193 देशों के सामने भारत ने दिखाया अपना रौद्र रूप, पाकिस्तान को उसी के फंदे में जकड़ दिया
भारत ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में अफगानिस्तान में पाकिस्तान के हमलों की कड़ी निंदा की है। भारत ने इसे अंतरराष्ट्रीय कानून का गंभीर उल्लंघन और क्षेत्रीय स्थिरता के लिए खतरा बताया है। पाकिस्तान-अफगानिस्तान के बीच नाजुक शांति बनी हुई थी लेकिन अब दोनों फिर से सीमा पर लड़ रहे हैं। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की बैठक में भारत के स्थायी प्रतिनिधि, राजदूत पार्वथनेनी हरीश ने कहा कि भारत युनामा की हवाई हमलों पर चिंता का समर्थन करता है और अफगानिस्तान में निर्दोष महिलाओं, बच्चों और क्रिकेटरों की हत्या की निंदा करता है। हम संयुक्त राष्ट्र चार्टर और अंतरराष्ट्रीय कानून का पूर्ण सम्मान करने, विशेष रूप से निर्दोष नागरिकों की सुरक्षा पर ध्यान देने की अपील में अपनी आवाज जोड़ते हैं। पिछले साढ़े चार साल से हम ऐसा दृष्टिकोण देखते आ रहे हैं।” उन्होंने अफगानिस्तान के लोगों की विकास संबंधी जरूरतों को पूरा करने के प्रति भारत की प्रतिबद्धता को दोहराया। हरीश ने कहा कि काबुल में दिल्ली के तकनीकी मिशन का दूतावास का दर्जा बहाल करने का भारत सरकार का हालिया निर्णय इस संकल्प को मजबूती से दर्शाता है। उन्होंने कहा, हम सभी संबंधित पक्षों के साथ अपने संबंध बनाए रखेंगे ताकि अफगानिस्तान के समग्र विकास, मानवीय सहायता और दक्षता विकास पहल में अपना योगदान बढ़ा सकें, जो अफगान समाज की प्राथमिकताओं और आकांक्षाओं के अनुरूप हो। अक्टूबर में अफगान विदेश मंत्री आमिर खान मुत्तकी छह दिवसीय यात्रा पर नयी दिल्ली आए थे। वह 2021 में काबुल पर तालिबान के कब्जे के बाद भारत का दौरा करने वाले पहले वरिष्ठ तालिबानी मंत्री थे।
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विदेश मंत्री एस जयशंकर ने मुत्तकी के साथ व्यापक बातचीत की, जिसमें दिल्ली के तकनीकी मिशन को काबुल में दूतावास का दर्जा देने की घोषणा की गई और अफगानिस्तान में विकास कार्यों को फिर से शुरू करने का संकल्प लिया गया। भारत ने अगस्त 2021 में काबुल पर तालिबान के कब्जे के बाद अपने दूतावास से अधिकारियों को वापस बुला लिया था। जून 2022 में भारत ने काबुल में एक तकनीकी टीम को तैनात कर अपनी कूटनीतिक उपस्थिति फिर से स्थापित की। हरिश ने कहा कि भारत अफगानिस्तान में सुरक्षा स्थिति पर करीबी नजर रखता है। उन्होंने पाकिस्तान की ओर इशारा करते हुए कहा कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद द्वारा प्रतिबंधित संगठनों जैसे आईएसआईएल, अलकायदा और लश्कर-ए-तैयबा, जैश-ए-मोहम्मद समेत उनके सहयोगियों तथा लश्कर-ए-तैयबा के छद्म संग्ठन द रेजिस्टेंस फ्रंट के खिलाफ सामूहिक प्रयासों को समन्वित करना चाहिए, ताकि वे सीमा पार आतंकवाद में लिप्त न हों।
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साउथ एशिया में अब जियोपॉलिटिकल तस्वीर तेजी से बदल रही है। इस क्षेत्र में हर बड़ा देश अपनी पकड़ मजबूत करने में लगा है। एक ओर भारत है और एक और चीन है। कई देश आज भारत के साथ खड़े हैं और ठीक वैसे ही कई देश चीन के साथ खड़े हैं। पाकिस्तान उन देशों में है जो चीन के सहारे लगातार भारत के खिलाफ साजिश रचने का काम करता है। चीन और पाकिस्तान पूरे साउथ एशिया क्षेत्र में अपनी पकड़ मजबूत करने के लिए एक नई चाल चल रहे हैं। दक्षिण एशियाई देशों के बीच एक नया गठबंधन बन रहा है और उसमें अब वो देश भी शामिल हो रहा है जो कभी भारत का बेहद करीबी हुआ करता था। हाल के दिनों में चीन पाकिस्तान मिलकर बांग्लादेश को अपने पाले में लाने की पूरी कोशिश कर रहे हैं और यह कहना गलत भी नहीं होगा कि यूनुस के सत्ता संभालने के बाद यह होता दिखाई भी दे रहा है। हाल ही में पाकिस्तान ने एक प्रस्ताव रखा है जिसका उद्देश्य दक्षिण एशियाई देशों के बीच गठबंधन को नया रूप देना और भारत के लंबे समय से चले आ रहे दबदबे को चुनौती देना है। इस कोशिश के पीछे चीन की भूमिका दिखाई दे रही है और इस नए समीकरण में अब बांग्लादेश भी शामिल होता दिखाई दे रहा है।
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पाकिस्तान के उप प्रधानमंत्री और विदेश मंत्री शाकडार ने खुद इस बात की ओर इशारा किया है कि पाकिस्तान, चीन और बांग्लादेश के बीच एक त्रिपक्षीय पहल शुरू हो चुकी है। इसके आगे अन्य दक्षिण एशियाई देश भी शामिल हो सकते हैं। डार ने इसे एक वेरिएबल जियोमेट्री मॉडल कहा। यानी वह साझेदारी वाली समूह जिसमें तकनीक कनेक्टिविटी और आर्थिक सहयोग को प्राथमिकता दी जाएगी। सार्क यानी दक्षिण एशियाई देशों की मल्टीलटरल संस्था और यह लगभग 10 साल से इनक्टिव है। यहां गौर करने वाली बात यह है कि बांग्लादेश का झुकाव अब पाकिस्तान और चीन की ओर जा रहा है।
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बांग्लादेश है जिसकी आजादी के लिए पाकिस्तान से भारत ने जंग लड़ी थी। जिस देश ने बांग्लादेशी आवाम को सबसे ज्यादा प्रताड़ित किया था। आज वो उसका सबसे करीबी बन गया है। अच्छा यह पहले ऐसा नहीं था। बांग्लादेश में 2024 में शेख हसीना के सत्ता से हटने के बाद यह समीकरण बदले हैं। हसीना के समय में बांग्लादेश ने भारत और चीन दोनों के साथ संतुलन बनाने की कोशिश की थी। भारत से रिश्ते बहुत अच्छे थे और पूरे क्षेत्र में एक संतुलन बना हुआ था और क्योंकि उन्होंने भारत चीन के साथ अच्छे रिश्ते बनाए थे तो इससे ढाका को भी काफी लाभ मिला था।
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नेबरहुड फर्स्ट पर जोर देना जरूरी
चीन सुपरपावर मॉडल पर काम कर रहा है। सालों से अमेरिका दुनिया में अपने ब्लॉक के देशों की संख्या बढ़ा रहा है। चीन का आउटरीच अब हमारे पड़ोस तक आ चुका है। पाकिस्तान व बांग्लादेश के साथ सार्क को बदल कर नया गठजोड़ बना रहा है। दक्षिण एशिया में पाकिस्तान चीन का सबसे बड़ा चमचा है। बांग्लादेश को भी पाकिस्तान ने साध कर चीन के पाले में बैठा दिया है। नेपाल, भूटान और श्रीलंका पर भी चीन की छाया पड़ चुकी है। अब भारत को काउंटर पॉलिसी पर काम करना होगा। यानी नेबरहुड फर्स्ट। पहले पड़ोस की सुध लेनी होगी।
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