दिलीप कुमार की 103वीं बर्थ एनिवर्सरी:पोस्टर देख पिता को पता चला बेटा बना हीरो, आधी उम्र की लड़की से शादी की हुई थी भविष्यवाणी
साल था 1922 का और जगह थी पेशावर। 11 दिसंबर की रात किस्सा ख्वानी बाजार की सोना बनाने वालों की गली में भयानक आग लगी थी। ठंडी, बर्फीली रात, तेज हवा और उससे भड़की आग, चारों तरफ अफरा-तफरी मच गई। इसी बीच पेशावर के एक घर में एक महिला की प्रसव पीड़ा बढ़ने लगी। घर के ज्यादातर मर्द आग बुझाने गए हुए थे। घर में महिला का देवर उमर था, इसलिए दाई लाने की जिम्मेदारी उसी पर थी। तेज हवा, कड़कड़ाती ठंड और आग की दहशत के बीच वह दाई को लेकर आया और उसी हंगामे के बीच एक स्वस्थ, गुलाबी, मजबूत बच्चे यूसुफ का जन्म हुआ, जो आगे चलकर हिंदी सिनेमा के सबसे बड़े सुपरस्टारों में से एक दिलीप कुमार के नाम से जाना गया। बॉलीवुड के ट्रैजडी किंग यानी दिलीप कुमार की आज 103वीं बर्थ एनिवर्सरी है। इस मौके पर आइए, उनकी जिंदगी से जुड़े कुछ किस्से जानते हैं। किशोर उम्र में घर छोड़कर चले गए थे दिलीप कुमार दिलीप कुमार की ऑटोबायोग्राफी द सब्सटेंस एंड द शैडो के अनुसार वो किशोरावस्था में एक बार घर छोड़कर पुणे (तब पूना) चले गए थे। उनके पिता लाला गुलाम सरवर एक फल व्यापारी थे। दिलीप कुमार के अपने पिता से रिश्ते कुछ तनावपूर्ण थे और एक बार किसी बात पर बहस के बाद उन्होंने गुस्से में घर छोड़ने का फैसला किया। लगभग 18 साल के दिलीप कुमार ट्रेन से पुणे पहुंचे और वहां एक ब्रिटिश आर्मी कैंटीन में काम करना शुरू किया। उन्होंने सैंडविच बनाने और बेचने का काम किया। अपनी अच्छी अंग्रेजी के कारण वह जल्द ही कैंटीन के मैनेजर बन गए। उन्होंने अच्छी कमाई की और दो साल बाद, जब उन्होंने पैसे बचा लिए, तो वह वापस बंबई (मुंबई) लौट आए। जब दिलीप कुमार को हुई थी जेल दिलीप कुमार जब पुणे के आर्मी क्लब में काम करते थे, तब क्लब में एक दिन ब्रिटिश शासन पर चर्चा छिड़ी। एक अफसर ने दिलीप कुमार से पूछा कि भारत ब्रिटिश शासन से आजादी की लड़ाई तो लड़ रहा है, लेकिन युद्ध में तटस्थ क्यों है। दिलीप कुमार ने ब्रिटिश संविधान की अपनी पढ़ाई के आधार पर एक स्पष्ट और दमदार जवाब दिया। अफसरों को उनकी बात पसंद आई और उन्होंने उन्हें अगली शाम क्लब के सामने भाषण देने का निमंत्रण दिया। फिर दिलीप कुमार ने रातभर मेहनत कर भाषण लिखा और अगली शाम जब उन्होंने पूरा तर्क रखा कि भारत की स्वतंत्रता की लड़ाई न्यायसंगत है और कैसे ब्रिटिश प्रशासन अपने ही संविधान के कानून तोड़ रहा है, तो सभा तालियों से गूंज उठी। पर यह खुशी ज्यादा देर टिक नहीं सकी। भाषण खत्म होते ही पुलिस ने उन पर ब्रिटिश-विरोधी विचार रखने का आरोप लगाते हुए उन्हें गिरफ्तार कर लिया। नाबालिग होने के बावजूद उन्हें सीधे येरवडा जेल ले जाया गया, वही जेल जहां कई आजादी सेनानी बंद किए जाते थे। वहां उन्हें एक कोठरी में रखा गया जिसमें शांत स्वभाव के कुछ सत्याग्रही बैठे थे। जेलर ने उन्हें गांधीवाला कहकर पुकारा और यह नाम सुनकर पहले तो वे चकित हुए, लेकिन जल्द ही उन्हें पता चला कि कोठरी के सभी कैदी गांधीजी के अनुयायी थे। उन कैदियों में से कुछ ने उन्हें बताया कि सरदार वल्लभभाई पटेल भी उसी जेल में बंद हैं और सभी उनके साथ भूख हड़ताल पर बैठे हैं। न जाने क्यों, दिलीप कुमार के मन में भी यह भावना जागी कि उन्हें भी उपवास करना चाहिए। उसी दिन उन्होंने गंदी थाली में आया खाना लेने से मना कर दिया और पूरी रात भूखे रहे। सुबह एक आर्मी मेजर उन्हें लेने आए। वह दिलीप कुमार को जानते थे और उनके साथ बैडमिंटन भी खेलते थे। उन्होंने उनकी रिहाई सुनिश्चित की और उन्हें क्लब वापस ले गए। दिलीप कुमार की जिंदगी का टर्निंग पॉइंट साल था 1942। मुंबई के चर्चगेट स्टेशन पर खड़े दिलीप कुमार को जरा भी अंदाजा नहीं था कि इस सुबह की एक मुलाकात उनकी जिंदगी की पूरी दिशा बदल देगी। दादर जाने के लिए ट्रेन का इंतजार कर रहे दिलीप कुमार का मकसद था सेना की छावनियों के लिए खाट सप्लाई करने वाले व्यापारी से मिलना। घर की आर्थिक जिम्मेदारियां, पारिवारिक कारोबार का बोझ और असफल प्रयासों का तनाव उनके चेहरे पर साफ झलक रहा था। उसी वक्त भीड़ में उनकी नजर एक परिचित चेहरे पर पड़ी। यह थे विल्सन कॉलेज में करियर गाइडेंस देने वाले डॉ. मसानी। बातचीत के दौरान जब दिलीप कुमार ने बताया कि वे नौकरी की तलाश में हैं, तो मसानी साहब ने कहा, “मैं मलाड जा रहा हूं, बॉम्बे टॉकीज के मालिकों से मिलने। तुम साथ चलो, शायद तुम्हारे लिए भी कोई काम निकल आए।” इस तरह दिलीप कुमार ने दादर की ट्रेन छोड़कर किस्मत की नई ट्रेन पकड़ ली। बॉम्बे टॉकीज उस समय का बड़ा स्टूडियो था। वहां डॉ. मसानी ने दिलीप कुमार की मुलाकात अभिनेत्री और स्टूडियो की मालकिन देविका रानी से करवाई। देविका रानी ने दिलीप कुमार से कुछ सवाल पूछे, जैसे “क्या आपको उर्दू आती है?” दिलीप कुमार की पेशावर की पृष्ठभूमि और परिवार की जानकारी लेने के बाद उन्होंने पूछा, “क्या आप एक्टिंग करना चाहेंगे? हम आपको 1250 रुपए महीने पर नौकरी दे सकते हैं।” दिलीप कुमार ने साफ कहा कि उन्हें एक्टिंग का अनुभव नहीं है। देविका रानी ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया, “अगर तुम मेहनत करके फल का कारोबार सीख सकते हो, तो एक्टिंग भी सीख सकते हो।” हालांकि घर लौटकर जब दिलीप कुमार ने बड़े भाई अय्यूब साहब को देविका रानी की ओर से मिले ऑफर के बारे में बताया, तो सवाल उठा क्या यह रकम महीने की है या सालभर की? अय्यूब ने कहा कि राज कपूर को तो महीने के सिर्फ 170 रुपए मिलते हैं, फिर इतना ज्यादा ऑफर कैसे? अगले दिन दिलीप कुमार ने चर्चगेट जाकर डॉ. मसानी से पुष्टि करवाई। फोन पर देविका रानी ने साफ कहा कि रकम 1250 रुपए महीने की है। उन्होंने बताया कि उन्हें दिलीप कुमार में बड़ी क्षमता दिखी, इसलिए शुरुआत से ही अच्छा वेतन दिया जा रहा है। इसके बाद दिलीप कुमार ने घर में बिना ज्यादा बताए बॉम्बे टॉकीज जॉइन कर लिया। घर में उन्होंने मां को सिर्फ इतना बताया कि उन्हें उर्दू वाले इज्जतदार काम में नौकरी मिली है, जिसमें 1250 रुपए महीने मिलेंगे। फिल्मों का जिक्र उन्होंने नहीं किया, क्योंकि उनके पिता सिनेमा को मजाक में नौटंकी कहा करते थे। इस तरह दिलीप कुमार की फिल्मों में एंट्री हुई और साल 1944 में उनकी पहली फिल्म ‘ज्वार भाटा’ रिलीज हुई। जब पिता को पता चला कि दिलीप कुमार फिल्मों में एक्टिंग करते हैं साल 1947 में आई फिल्म जुगनू दिलीप कुमार के करियर की पहली बड़ी हिट थी। इसमें उनके साथ नूरजहां थीं। फिल्म की सफलता के बाद शहर भर में उनके पोस्टर लग गए। एक बड़ा होर्डिंग क्रॉफर्ड मार्केट के पास भी था, जहां उनके पिता लाला गुलाम सरवर की फल मंडी थी। एक सुबह लाला गुलाम सरवर मंडी में सेब की खेप उतरवा रहे थे। तभी उनके पुराने दोस्त और राज कपूर के दादा बशेश्वरनाथ कपूर पहुंचे। दोनों मिले। लाला साहब अक्सर बशेश्वरनाथ को छेड़ते थे। वो बशेश्वरनाथ से कहते थे, "इतनी शान की मूंछें हैं आपकी और बेटा–पोता दोनों नौटंकी में लग गए।" उनका इशारा पृथ्वीराज कपूर और राज कपूर की ओर था। बशेश्वरनाथ को अपने बेटे पृथ्वीराज और पोते राज के एक्टर बनने का कोई अफसोस नहीं था। बातचीत के दौरान बशेश्वरनाथ हंसते हुए बोले, "आज मैं तुम्हें कुछ दिखाऊंगा, देखकर हैरान रह जाओगे।" वे लाला साहब को लेकर सड़क के पार गए, जहां फिल्म जुगनू का एक बड़ा होर्डिंग लगा था। उस पर लिखा था, "A New Star Is Born – DILIP KUMAR." यानी एक नया सितारा दिलीप कुमार पैदा हुआ है। चेहरा उनके बेटे यूसुफ का था, लेकिन नाम किसी और का। बशेश्वरनाथ बोले, "देख लो, ये तुम्हारा ही बेटा है। नाम बदल लिया, ताकि खानदान की इज्जत भी बनी रहे और काम भी चलता रहे।" लाला गुलाम सरवर के लिए यह मजाक नहीं, बल्कि भीतर तक लगने वाली बात थी। उनका सपना था कि बेटा सरकारी अफसर बने, ऊंचे ओहदे पर बैठे, लेकिन उनका बेटा अब फिल्मी पोस्टर पर मुस्कुरा रहा था, वो भी नए नाम के साथ। उस दिन के बाद कई दिनों तक उन्होंने बेटे से बात नहीं की। कोई गुस्सा जाहिर नहीं किया, बस गहरी खामोशी। पिता और पुत्र में जब कभी बात होती, तो बस एक-दो शब्द में। दिलीप कुमार भी डरते थे, पिता की आंखों में नहीं देख पाते थे। दिलीप कुमार ने यह बात राज कपूर से शेयर की। राज ने कहा, "अब सिर्फ एक शख्स मदद कर सकता है पापा जी।" कुछ दिनों बाद पृथ्वीराज कपूर एक सामान्य मुलाकात के बहाने दिलीप कुमार के घर पहुंचे। काफी देर तक पृथ्वीराज कपूर और लाला गुलाम सरवर के बीच बातचीत हुई और माहौल हल्का हो गया। कुछ समय बाद लाला गुलाम सरवर ने जुगनू देखने वालों से बेटे की तारीफ सुनी। उसी शाम उन्होंने दिलीप को पुकारा, "आओ, बैठो।" धीरे से बोले, “अब मैंने मान लिया है कि तुमने जो रास्ता चुना है, वो तुम्हारा अपना है।” दिलीप कुमार को तभी समझ आया कि पिता ने उन्हें माफ कर दिया है। भले ही वो पूरी तरह खुश नहीं थे, लेकिन अब वो बेटे की राह को स्वीकार कर चुके थे। पिता ने नरगिस को समझ लिया था बेटे की प्रेमिका दिलीप कुमार की फिल्म मेला साल 1948 में रिलीज हुई थी। यह उस साल की सबसे ज्यादा कमाई करने वाली हिंदी फिल्मों में से एक थी। इस फिल्म में दिलीप कुमार की प्रेमिका का किरदार अभिनेत्री नरगिस ने निभाया था। फिल्म में दिलीप कुमार का किरदार एक गांव के युवक का था, जिसका नाम मोहन था। मोहन और मंजू (नरगिस) बचपन के प्रेमी होते हैं। यह एक दुखद प्रेम कहानी थी। मोहन और मंजू की सगाई हो जाती है, लेकिन शादी से पहले मोहन शहर जाता है और रास्ते में उसे लूट लिया जाता है, जिससे वह अस्पताल में भर्ती हो जाता है। गांव में लोग उसे मरा हुआ समझ लेते हैं और सामाजिक दबाव के चलते मंजू की शादी एक 70 साल के बुजुर्ग व्यक्ति से कर दी जाती है। बाद में जब प्रेमी मिलते हैं, तो भाग्य उन्हें अलग कर देता है और कहानी का अंत दुखद होता है। खास बात यह थी कि मेला पहली फिल्म थी जो दिलीप कुमार के पिता ने सिनेमा हॉल में देखी थी। वह अपने भाई उमर और एक दोस्त के साथ दिन के शो में फिल्म देखने गए थे। उसी दिन दिलीप कुमार थोड़ा जल्दी घर लौटे क्योंकि उन्हें अपनी बीमार मां के लिए दवा लानी थी। घर पहुंचे तो पिता सामने बैठे थे और बोले, "आओ, बैठो मेरे पास।" चाचा उमर मुस्कुरा रहे थे। फिर चाचा ने बताया कि वे फिल्म मेला देखने गए थे। दिलीप कुमार के पिता उन्हें देख रहे थे, उनकी आंखों में कुछ सोचने का भाव था। उन्होंने गंभीरता से कहा, "अगर तुम सच में उस लड़की (नरगिस) से शादी करना चाहते हो, तो मैं जाकर उसके माता-पिता से बात कर लूं? बस मुझे बता दो कि वह कौन है। तुम्हें इतना दुखी होने की जरूरत नहीं है।" दिलीप कुमार को कुछ देर तक समझ नहीं आया कि बात चल किसकी रही है। फिर अचानक उन्हें लगा कि ये लोग नरगिस को सचमुच उनकी प्रेमिका समझ बैठे हैं। दिलीप कुमार अंदर ही अंदर हंस पड़े, लेकिन जल्दी से बात साफ करनी पड़ी ताकि कहीं पिता सच में नरगिस के घर न पहुंच जाएं। दिलीप कुमार ने अपने पिता को समझाया कि यह सब फिल्म का रोल है, असल जिंदगी में ऐसा कुछ नहीं है। ज्योतिषी ने की थी शादी की भविष्यवाणी दिलीप कुमार ने साल 1966 में अभिनेत्री सायरा बानो से शादी की थी। दिलचस्प बात यह है कि जब उनकी शादी हुई तब सायरा बानो 22 साल की थीं और दिलीप कुमार 44 साल के थे। दिलीप कुमार की शादी से जुड़ी भविष्यवाणी का जिक्र एक्टर ने अपनी ऑटोबायोग्राफी में किया था। दरअसल, तमिलनाडु के कोयंबटूर में फिल्म आजाद (1955) की शूटिंग के दौरान फिल्म प्रोड्यूसर एस. एस. वासन साहब ने उन्हें एक मशहूर ज्योतिषी से मिलवाया था। उस ज्योतिषी ने दिलीप कुमार का चेहरा और हाथ की रेखाएं देखकर उनकी कुंडली बनाई और कहा कि एक्टर की शादी चालीस की उम्र के बाद होगी। उन्होंने कहा था कि दुल्हन उम्र में उनसे लगभग आधी होगी, चांद जैसी गोरी, बेहद खूबसूरत और उसका पेशा भी फिल्मों से जुड़ा होगा। वह पति को पलकों पर रखकर जीवन भर प्रेम करेगी। ज्योतिषी ने आगे कहा था कि दिलीप कुमार के कर्मों का भारी बोझ वह अपने ऊपर लेगी और उसे एक गंभीर बीमारी होगी। यह सब वह बिना किसी शिकायत के सहन करेगी ताकि उनके कर्मों का प्रभाव उन पर न आए। ज्योतिषी की भविष्यवाणी सुनने के बाद दिलीप कुमार ने कहा था, “मैं तो कभी फिल्म वाली लड़की से शादी ही नहीं करूंगा।” ज्योतिषी अडिग रहा। उस समय उन्होंने इस बात को ज्यादा महत्व नहीं दिया। हालांकि ज्योतिषी की भविष्यवाणी सच हुई। दिलीप कुमार की शादी देर से हुई और उनसे आधी उम्र की लड़की से हुई। सायरा बानो एक अभिनेत्री भी थीं। शादी के वक्त दिलीप कुमार को यह भविष्यवाणी याद आई थी। .................................................................... बॉलीवुड से जुड़ी ये खबरें भी पढ़ें.... धर्मेंद्र ने गुस्से में चलाई गोली, अमिताभ बाल-बाल बचे:फ्लर्ट करने पर तनुजा ने थप्पड़ मारा, अफेयर की खबर छापने वाले को सरेआम पीटा बॉलीवुड के दिग्गज अभिनेता धर्मेंद्र का 24 नंवबर को निधन हो गया। वो 89 साल के थे। उन्होंने 6 दशकों के अभिनय करियर में 300 से ज्यादा फिल्में कीं। शोले उनके करियर की सबसे कामयाब फिल्मों में से एक रही। पूरी खबर यहां पढ़ें
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