2025 में ओपन सफारी बना उत्तराखंड:आमदखोर बने भालू-गुलदार, वन्यजीव विशेषज्ञों ने बताया आखिर क्यों कर्फ्यू जैसे हालात
उत्तराखंड में अब अगर आप सड़क पर चलते हैं तो भालू, गुलदार या हाथी आपको कभी भी दिख सकते हैं। जंगलों से निकलकर जंगली जानवर गांव, कस्बों और शहरों तक पहुंच गए हैं और राज्य मानो एक ओपन सफारी में तब्दील हो गया है। हालात इतने गंभीर हैं कि गढ़वाल के सांसद अनिल बलूनी ने संसद में खुद स्वीकार किया कि पहाड़ पर कर्फ्यू जैसे हालात बन गए हैं। सांसद के इस बयान से भी समझा जा सकता है कि इस साल जंगली जानवरों का आंतक कैसे अपने चर्म पर है। आंकड़े बताते हैं कि साल 2025 में अब तक 547 हमले दर्ज हो चुके हैं, जो 2024 की तुलना में 31 प्रतिशत ज्यादा हैं। वन्यजीव विशेषज्ञों के अनुसार आबादी का तेजी से फैलना और जंगलों के पारंपरिक मार्गों में रुकावटें इस बढ़ते खतरे की मुख्य वजह हैं। आंकड़ों में बढ़ता संकट, जंगलों तक सीमित नहीं जानवर सरकारी रिकॉर्ड के मुताबिक, उत्तराखंड में जंगली जानवरों के हमले लगातार बढ़ते जा रहे हैं। साल 2020 में जहां मानवों पर 324 हमले दर्ज हुए थे, वहीं 2024 में यह संख्या बढ़कर 410 तक पहुंच गई। 2025 में अब तक 544 हमले सामने आ चुके हैं, जो अब तक का सबसे बड़ा आंकड़ा है। इन हमलों की खास बात यह रही कि जंगली जानवर सिर्फ जंगलों तक सीमित नहीं रहे, बल्कि स्कूलों, रिहायशी इलाकों, खेतों और सड़कों के आसपास भी नजर आए। कई मामलों में लोगों की जान गई, जबकि कई लोग गंभीर रूप से घायल हुए। क्यों बढ़ रहा है मानव-वन्यजीव संघर्ष वन्यजीव विशेषज्ञों के अनुसार, जंगलों के नजदीक तक सघन आबादी का विस्तार मानव- वन्यजीव संघर्ष की सबसे बड़ी वजह बन रहा है। जंगलों से सटे इलाकों में तेजी से बस्तियां बसने और सड़क व अन्य निर्माण कार्य बढ़ने से वन्यजीवों के पारंपरिक कॉरिडोर बाधित हुए हैं। इसके अलावा, सुरक्षित इलाकों तक मानव गतिविधियों के बढ़ने से जानवरों का प्राकृतिक व्यवहार बदला है। भोजन और सुरक्षित ठिकानों की तलाश में वे अब इंसानी बस्तियों की ओर बढ़ रहे हैं, जिससे संघर्ष की घटनाएं लगातार बढ़ती जा रही हैं। सरकार ने माना गंभीर चुनौती, मुख्यमंत्री के बड़े ऐलान राज्य सरकार ने मानव–वन्यजीव संघर्ष की बढ़ती घटनाओं को गंभीरता से लिया है। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने इस चुनौती से निपटने के लिए कई अहम कदम उठाने की घोषणा की है। इसके तहत राज्य के संवेदनशील इलाकों में चरणबद्ध और योजनाबद्ध तरीके से सोलर फेंसिंग और सेंसर बेस्ड अलर्ट सिस्टम स्थापित किया जाएगा, ताकि समय रहते लोगों को खतरे की जानकारी मिल सके। इसके साथ ही, वन्यजीवों की बढ़ती आबादी को नियंत्रित करने के लिए हर जिले में आधुनिक वन्यजीव बंध्याकरण (नसबंदी) केंद्र खोले जाएंगे। मानव–वन्यजीव संघर्ष से प्रभावित क्षेत्रों में वन्यजीवों के रेस्क्यू और पुनर्वास के लिए रिहैबिलिटेशन सेंटर स्थापित किए जाएंगे, जिनके लिए पर्वतीय क्षेत्रों में न्यूनतम 10 नाली और मैदानी क्षेत्रों में न्यूनतम 1 एकड़ भूमि आरक्षित की जाएगी। वन विभाग को संसाधन और अधिकार वन विभाग को और मजबूत करने के लिए राज्य सरकार ने अतिरिक्त संसाधन देने का फैसला किया है। जाल, पिंजरे, ट्रेंक्युलाइजेशन गन और अन्य जरूरी उपकरणों की उपलब्धता के लिए 5 करोड़ रुपए की अतिरिक्त धनराशि की व्यवस्था की जाएगी। इसके अलावा, मानव–वन्यजीव संघर्ष की प्रभावी रोकथाम के लिए केंद्रीय वन्यजीव अधिनियम के सुसंगत प्रावधानों में बदलाव कर रेंजर स्तर के अधिकारियों को अधिक अधिकार देने की तैयारी है। जरूरत के अनुसार नियमों में संशोधन किए जाएंगे, ताकि मौके पर ही त्वरित कार्रवाई संभव हो सके। इस मामले में राज्य सरकार ने केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव से भी सहयोग मांगा है। विभाग हर स्तर पर कर रहा प्रयास राज्य के पीसीसीएफ वाइल्डलाइफ रंजन मिश्रा ने बताया कि वन्यजीवों के बढ़ते हमलों को रोकने के लिए विभाग हर स्तर पर प्रयास कर रहा है। नए उपकरणों की खरीद, मैनपावर बढ़ाने और फील्ड अधिकारियों को निर्देश दिए गए हैं। उन्होंने कहा कि जनसहयोग और जागरूकता भी बेहद जरूरी है, इसके लिए लोगों को सतर्क किया जा रहा है। खासतौर पर भालुओं के हमलों को लेकर विभाग ने विशेष सतर्कता बरतने के निर्देश जारी किए हैं। हमला, मौत या नुकसान पर सरकारी मुआवजा उत्तराखंड में जंगली जानवरों के हमलों में मृत्यु, घायल या दिव्यांग होने पर सरकार की ओर से मुआवजा दिया जाता है। बाघ, तेंदुआ, हिम तेंदुआ, जंगली हाथी, भालू, लकड़बघा, जंगली सुअर, मगरमच्छ, घड़ियाल के हमले या सांप के काटने से मृत्यु होने पर 10 लाख रुपए की अनुग्रह राशि दी जाती है। इसके अलावा पालतू पशुओं के मारे जाने, फसलों को नुकसान और जंगली हाथियों द्वारा मकानों को क्षति पहुंचाने पर भी मुआवजे का प्रावधान है। हाल ही में आपदा प्रबंधन विभाग ने वन्यजीव संघर्ष राहत वितरण के लिए 15 करोड़ रुपए की राशि स्वीकृत की है। जैव विविधता का गढ़ है उत्तराखंड उत्तराखंड में जिम कॉर्बेट और राजाजी राष्ट्रीय उद्यान से लेकर नंदा देवी बायोस्फीयर रिजर्व तक, घने जंगल और अल्पाइन घास के मैदान अनगिनत प्रजातियों के लिए सुरक्षित आश्रय हैं। राज्य में 6 राष्ट्रीय उद्यान, 7 वन्यजीव अभयारण्य, 4 संरक्षण रिजर्व और 1 जीवमंडल रिजर्व मौजूद हैं। वैज्ञानिक अध्ययनों के अनुसार, राज्य में 102 स्तनधारी, 600 पक्षी, 19 उभयचर, 70 सरीसृप और 124 मछलियों की प्रजातियां पाई जाती हैं। इनमें बाघ, एशियाई हाथी, गुलदार, कस्तूरी मृग, हिम तेंदुआ और मोनाल जैसी विश्व स्तर पर संकटग्रस्त प्रजातियां भी शामिल हैं।
उत्तराखंड में पशुओं के चारे से बनाया करोड़ों का प्रोडक्ट:नेचुरल शैंपू बनाने के लिए शहर छोड़ लौटे गांव, रिश्तेदार की एक डिमांड से आया आइडिया
रोजगार की कमी के चलते उत्तराखंड के पहाड़ लंबे समय से पलायन की मार झेलते रहे हैं। गांव खाली होते गए और युवा रोजी-रोटी की तलाश में मैदानों और महानगरों की ओर बढ़ते चले गए। लेकिन बीते कुछ सालों में तस्वीर बदलती दिख रही है। अब पहाड़ों की ओर रिवर्स पलायन भी तेज हुआ है और लोग वापस लौटकर अपने गांव में ही रोजगार तलाशने लगे हैं। पलायन आयोग की 2025 की रिपोर्ट के अनुसार उत्तराखंड में रिवर्स पलायन के मामलों में 44% की बढ़ोतरी दर्ज की गई है। रिपोर्ट बताती है कि रिवर्स पलायन करने वाले जिलों में पौड़ी गढ़वाल पहले नंबर पर है, जहां 1213 लोग बड़े शहर छोड़कर वापस पहाड़ों में लौटे हैं। यानी उत्तराखंड में सबसे ज्यादा रिवर्स पलायन पौड़ी जिले में हुआ है। इसी पौड़ी जिले के ब्लॉक एकेश्वर के गांव चमाली से एक ऐसी कहानी सामने आई है, जहां दो भाइयों ने पशुओं के लिए इस्तेमाल होने वाले भीमल को ही आय का जरिया बना लिया। रिश्तेदारी की एक साधारण सी डिमांड से शुरू हुआ यह प्रयोग आज करोड़ों के टर्नओवर, सैकड़ों महिलाओं को रोजगार और पहाड़ों में टिकाऊ आजीविका का मॉडल बन चुका है। दैनिक भास्कर एप से बातचीत में इस पूरी यात्रा को संजय बिष्ट ने विस्तार से बताया है। सवाल जवाब में पढ़िए पूरी बातचीत... रिपोर्टर: आपने भीमल शैंपू बनाने का काम कैसे शुरू किया? जवाब: मैं (संजय बिष्ट) और मेरे भाई अजय बिष्ट हम दोनों भाई पहले आर्मी में थे। रिटायरमेंट होने के बाद कोटद्वार में हमारा कोचिंग सेंटर था। करीब तीन-चार साल तक कोचिंग चली, लेकिन फिर कोरोना आ गया। इसके बाद हमें कोचिंग सेंटर बंद करना पड़ा। फिर हम दोनों भाइयों ने सोचा कि गांव में जाकर कुछ किया जाए। करीब दो-चार महीने हम खाली रहे। इसी दौरान एक रिश्तेदार ने दिल्ली से फोन किया कि हमें भीमल की छाल भिजवा दो। हमने एक दिन भेजी, फिर दूसरे दिन भी भेजी। तभी दिमाग में आया कि क्यों न इसी पर काम किया जाए। रिपोर्टर: पशुओं के चारे को आपने इनकम में बदलने का सोचा? आगे के सफर में क्या हुआ? जवाब: इसके बाद हमने इसकी रिसर्च एंड डेवलपमेंट की। फिर स्थानीय बाजारों- नौगांवखाल, पौड़ी, किरखू, सतपुली, पाटीसैन आदि में इसे बेचना शुरू किया। शुरुआत में दो-दो बोतल सैंपल के तौर पर बेचीं। लोगों को यह पसंद आया, तो हमने सोचा इसे और बड़ा किया जाए। धीरे-धीरे यह प्रोडक्ट दिल्ली, मुंबई जैसे बड़े शहरों तक पहुंचने लगा। जब ऑफलाइन अच्छा चलने लगा तो ऑनलाइन भी ट्राई किया। फैमिली और बच्चों ने पूरा सपोर्ट किया। अमेजन पर जब हमने भीमल शैंपू उतारा तो वहां से भी अच्छी-खासी डिमांड आने लगी। रिपोर्टर: साल भर का आपका टर्नओवर कितना है और कितने लोगों को रोजगार दे रहे हैं? जवाब: मेरे साथ 5-6 ब्लॉकों की समूह की महिलाएं जुड़ी हुई हैं। करीब 350 से 400 महिलाएं मुझे भीमल की छाल प्रोवाइड कराती हैं। यानी 350 से ज्यादा लोग सीधे तौर पर इससे जुड़े हैं। इसके अलावा मेरे यहां 15 से 20 युवक सीधे काम कर रहे हैं, जिन्हें हम रोजगार दे रहे हैं। अभी तक हमारा टर्नओवर 1 करोड़ रुपए से ज्यादा हो चुका है। रिपोर्टर: आगे इसका भविष्य आप कैसे देखते हैं? जवाब: आज की डेट में जितने भी केमिकल वाले शैंपू बाजार में हैं, उनके मुकाबले यह कई गुना फायदेमंद है। पहले हमारे दादी-दादा, नाना-नानी इसी चीज का इस्तेमाल करते थे। आप देखेंगे कि बुजुर्ग होने के बाद भी उनके बाल काले रहते थे। हमारे शैंपू में केमिकल की मात्रा सिर्फ 0.5% रहती है, वह भी इसलिए ताकि शैंपू खराब न हो। जो प्रॉपर्टीज सैंपल में होती हैं, वही प्रॉपर्टीज हमारे हर्बल भीमल शैंपू में मिलती हैं। इसकी लैब टेस्टिंग हमने दिल्ली से करवाई है और सभी रिपोर्ट्स हमारे पास हैं। रिपोर्टर: माल्टा-बुरांश स्क्वैश के अलावा और कौन-कौन से प्रोडक्ट तैयार कर रहे हैं? जवाब: शैंपू के साथ हमने एक पहाड़ी चटनी तैयार की है। इसमें पुदीना, धनिया, मिर्च और पहाड़ के मसाले शामिल हैं। इसमें सिर्फ आधा चम्मच लेने पर पूरा टेस्ट मिल जाता है। यह गैस के लिए भी बेस्ट है। इसके अलावा हमने अपना एक मसाला तैयार किया है, जो किचन किंग का काम करता है। इसमें सिर्फ नमक डालना होता है, बाकी सारे मसाले पहले से शामिल रहते हैं। रिपोर्टर: सरकार की तरफ से आपको क्या मदद मिली? जवाब: जब मैंने काम शुरू किया तो बैंक के जरिए पीएमईजीपी (प्रधानमंत्री रोजगार सृजन कार्यक्रम) योजना के तहत मुझे 10 लाख रुपए का लोन मिला। उसी से मैंने अपना सेटअप स्टार्ट किया। यह लोन दो-तीन साल में क्लियर हो गया। इसके अलावा नए प्रोडक्ट्स के लिए सरकार की तरफ से 10 लाख रुपए की सब्सिडी का भी प्रावधान मिला, जिसका मैंने लाभ लिया। सरकार का कहना है कि अगर सिस्टम को और आगे बढ़ाना है तो भविष्य में और लोन की सुविधा भी मिल सकती है।
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