रूस-यूक्रेन युद्ध को समाप्त करने के लिए चल रही वार्ता में एक बड़ी सफलता के रूप में, यूक्रेनी राष्ट्रपति वलोडिमिर ज़ेलेंस्की ने बुधवार को अमेरिका के नेतृत्व वाले एक नए प्रस्ताव का विवरण साझा किया, जिसका उद्देश्य फरवरी 2022 से जारी युद्ध को रोकना है। ज़ेलेंस्की ने कथित तौर पर कहा कि इस योजना पर कीव और वाशिंगटन के वार्ताकारों के बीच सहमति बनी है और इसे प्रतिक्रिया के लिए मॉस्को को भेज दिया गया है। एसोसिएटेड प्रेस के अनुसार, यूक्रेन के राष्ट्रपति ने कहा कि अमेरिका के साथ शांति वार्ता के बाद कई मुद्दों पर सहमति बन गई है, लेकिन क्षेत्रीय मुद्दा अनसुलझा है। एएफपी समाचार एजेंसी के मुताबिक, ज़ेलेंस्की ने दस्तावेज़ का मसौदा प्रकाशित नहीं किया, लेकिन कीव में पत्रकारों के साथ एक ब्रीफिंग में उन्होंने योजना की मुख्य बातों का बिंदुवार विवरण दिया।
मसौदे को देखने वाली समाचार एजेंसी के अनुसार, इस रूपरेखा को अमेरिका और यूक्रेन के बीच अतिरिक्त द्विपक्षीय समझौतों द्वारा पूरक बनाया जाएगा, जिनमें सुरक्षा गारंटी और युद्धोत्तर पुनर्निर्माण शामिल हैं। यूक्रेन की संप्रभुता की पुनः पुष्टि की जाएगी। हम यह स्पष्ट करते हैं कि यूक्रेन एक संप्रभु राज्य है, और समझौते पर हस्ताक्षर करने वाले सभी देश अपने हस्ताक्षरों के माध्यम से इसकी पुष्टि करते हैं। यह दस्तावेज़ रूस और यूक्रेन के बीच एक पूर्ण और बिना शर्त गैर-आक्रामकता समझौते का गठन करता है।
दीर्घकालिक शांति को बढ़ावा देने के लिए, अंतरिक्ष आधारित मानवरहित निगरानी के माध्यम से संपर्क रेखा की निगरानी करने, उल्लंघनों की शीघ्र सूचना सुनिश्चित करने और संघर्षों को हल करने के लिए एक निगरानी तंत्र स्थापित किया जाएगा। तकनीकी टीमें सभी विवरणों पर सहमति बनाएंगी।
यूक्रेन को मजबूत सुरक्षा गारंटी मिलेगी। शांति काल में यूक्रेन के सशस्त्र बलों की संख्या 800,000 कर्मियों पर बनी रहेगी। संयुक्त राज्य अमेरिका, नाटो और यूरोपीय हस्ताक्षरकर्ता देश यूक्रेन को अनुच्छेद 5 के समान सुरक्षा गारंटी प्रदान करेंगे।यदि रूस यूक्रेन पर आक्रमण करता है, तो समन्वित सैन्य कार्रवाई के अलावा, रूस के विरुद्ध सभी वैश्विक प्रतिबंध पुनः लागू कर दिए जाएंगे।
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भारत के अरुणाचल प्रदेश को लेकर पेंटागन ने अपनी रिपोर्ट में जिक्र किया है। अरुणाचल पर चीन कब्जा करना चाहता है। पेंटागन का दावा है कि 2049 तक चीन का यहां पर कब्जे का प्लान है। पेंटागन ने अमेरिकी संसद को चीन के विस्तारवादी प्लान को लेकर यह रिपोर्ट दी है। ताइवान, साउथ चाइना सी, जापान के सिंकाकू आइलैंड के साथ अरुणाचल प्रदेश का भी नाम इस रिपोर्ट में है। चीन अरुणाचल प्रदेश को कोर इंटरेस्ट समझता है। पहले कोर इंटरेस्ट में सिर्फ ताइवान दक्षिण चीन सागर था। अब अरुणाचल को भी कोर इंटरेस्ट में शामिल किया गया है। 2049 तक चीन अरुणाचल प्रदेश पर कब्जा करना चाहता है।
चीन मित्रता की आड़ में सीमा पर दबाव बढ़ा सकता है। इसके आसार नजर आ रहे हैं। एक्सपेंशन की पॉलिसीज को लगातार चीन आगे बढ़ाता हुआ नजर आता है। लेकिन हाल के समय में अगर देखा जाए तो ऐसा लगता है कि रिश्ते बेहतर करने की कोशिशें हो रही हैं दोनों ही तरफ से। पिछले साल हमने देखा कि प्रधानमंत्री मोदी और प्रेसिडेंट जिनपिंग की मीटिंग हुई रूस में और उसके बाद फिर इस साल प्रधानमंत्री चीन गए भी एससीओ सम्मेलन में रिश्ते सुधर रहे हैं। चीन का पहला टारगेट भारत नहीं है। चीन का पहला टारगेट ताइवान है और ताइवान पर कब्जा करने में चीन भारत का भी पॉलिटिकल समर्थन की उम्मीद लगाए बैठा है। दुनिया के तमाम देशों को यह मैसेज दे रहा है कि ताइवान उनका अपना हिस्सा है।
अमेरिकी रिपोर्ट जो पेंटागन की रिपोर्ट है वो कुछ और कहती है। वो कहती है कि यह मसला ताइवान तक नहीं रुकेगा। बल्कि पहले वो ताइवान पर कब्जा करेगा। फिर वो साउथ चाइना सी के अलग-अलग इलाकों पर जो अपना दावा करता है उस पर आगे बढ़ेगा। लेकिन वो अरुणाचल को भी नहीं छोड़ने वाला है। हमने पहले भी देखा है कि कैसे अरुणाचल प्रदेश के अलग-अलग जगहों के वो नाम बदलने की कोशिश करता है। ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यही है कि आखिरकार किस तरीके से भारत सरकार चीन के साथ संबंधों को रखते हुए भी अपने इस वास्तविक खतरे से निपटती है।
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