यूक्रेन का तीखा जवाब: पुतिन पर हमले का रूस का दावा झूठा, कोई सबूत नहीं!
यूक्रेन के विदेश मंत्री एंड्री सिबिहा ने मंगलवार को रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के आवास पर कथित हमले के रूस के दावों को सिरे से खारिज करते हुए मॉस्को पर घटना को मनगढ़ंत बनाने और गलत सूचना फैलाने का आरोप लगाया। एक बयान में उन्होंने कहा लगभग एक दिन बीत गया है और रूस ने अभी तक पुतिन के आवास पर कथित हमले के अपने आरोपों का कोई ठोस सबूत नहीं दिया है। और वे देंगे भी नहीं। क्योंकि ऐसा कोई सबूत है ही नहीं। ऐसा कोई हमला हुआ ही नहीं। यूक्रेन के विदेश मंत्री ने कथित हमले पर चिंता जताने वाले कुछ देशों, जिनमें पाकिस्तान भी शामिल है, की प्रतिक्रियाओं पर निराशा व्यक्त की।
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उन्होंने कहा कि 7 सितंबर, 2025 को जब एक रूसी मिसाइल ने यूक्रेनी सरकारी इमारत पर हमला किया था, तब ऐसी कोई प्रतिक्रिया नहीं दी गई थी। उन्होंने आगे कहा कि हम उन बयानों को देखकर निराश और चिंतित हैं... जिनमें उस हमले के बारे में चिंता व्यक्त की गई है जो कभी हुआ ही नहीं। यह और भी आश्चर्यजनक है क्योंकि इन तीनों देशों ने 7 सितंबर, 2025 को जब एक असली रूसी मिसाइल ने असली यूक्रेनी सरकारी इमारत पर हमला किया था, तब कोई आधिकारिक बयान जारी नहीं किया था।
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संयम बरतने का आह्वान करते हुए, सिबिहा ने अंतरराष्ट्रीय समुदाय से अपुष्ट आरोपों पर प्रतिक्रिया देने से बचने का आग्रह किया और कहा कि ऐसे कदम शांति की दिशा में चल रहे राजनयिक प्रयासों को कमजोर करते हैं। उन्होंने कहा हम सभी देशों से जिम्मेदारी से काम करने और अपुष्ट दावों पर प्रतिक्रिया देने से बचने का आह्वान करते हैं, क्योंकि इससे हाल ही में आगे बढ़ रही रचनात्मक शांति प्रक्रिया कमजोर होती है। सिबिहा की ये टिप्पणी रूसी विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव द्वारा 29 दिसंबर की रात को नोवगोरोड क्षेत्र में राष्ट्रपति पुतिन के राजकीय आवास पर कीव द्वारा 91 मानवरहित हवाई वाहनों (यूएवी) से ड्रोन हमले की घोषणा के बाद आई है, जैसा कि टीएएसएस ने बताया है।
Battle of Begums का चैप्टर क्लोज! एक हुईं दुनिया से रुखसत, एक सत्ता से दूर, 34 साल की लड़ाई में तिल-तिल तबाह होता रहा बांग्लादेश
एक बेहद ही लोकप्रिय कहावत है कि एक म्यान में दो तलवारें हरगिज नहीं रह सकती। एक नजर दौराने पर आपको पता चलेगा कि बांग्लादेश की पूरी राजनीति इसी मुहावरे के ईर्द-गिर्द घूमती नजर आ जाएगी। 1971 में पाकिस्तान के अस्तित्व से अलग होकर नए राष्ट्र के रूप में उभरे बांग्लादेश का इतिहास ही विद्रोह और रक्तपात से पटा पड़ा है और तख्ता पलट से भरे इस मुल्क के इतिहास के केंद्र में हैं दो महिलाएं शेख हसीना और खालिदा जिया और इनकी दुश्मनी को बैटल्स ऑफ बेगम्स कहा जाता रहा। बांग्लादेश की राजनीति इन्हीं दोनों कद्दावर महिलाओं के बीच घूमती रही। शेख हसीना बांग्लादेश के संस्थापक और बंगबंधु कहे जाने वाले पहले राष्ट्रपति शेख मुजीबुर रहमान की बेटी हैं जबकि खालिदा जिया पूर्व सैन्य अधिकारी और राष्ट्रपति जय उर रहमान की बेगम थीं। दोनों का ही संबंध रसूखदार परिवारों से रहा है। अपने-अपने परिवारों की सियासत को इन्होंने आगे बढ़ाया। बांग्लादेश की राजनीति में दोनों नेताओं की लड़ाई को बैटल ऑफ बेगम्स नाम दिया गया था। ये दोनों महिलाएं दशकों तक केंद्रीय भूमिका में रहीं। देश ने उनके बीच कभी सहयोग तो कभी तीखी दुश्मनी के दौर भी देखे। आज, जब इनमें से एक का जीवन समाप्त हो गया है, तब दूसरी ने सार्वजनिक रूप से उनके योगदान को स्वीकार किया है।
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जो जीता वो सिकंदर, जो हारा वो जेल के अंदर
1971 से ही बांग्लादेश की नियति जीतने वाले के नक्शे कदम पर चलती रही है। जो जीतता है वह सब कुछ ले जाता है। जो हारता है उसे जेल की कोठरी देखनी पड़ सकती है। देश से भागना पड़ सकता है या फिर उसकी कब्र भी खोद सकती है। कहानी की शुरुआत 1975 से होती है। इसी बरस शेख हसीना के पिता मुजब उर रहमान की हत्या कर दी गई। उन्हें बंग बंधु के नाम से जाना जाता था। आजादी के बाद वह देश के पहले राष्ट्रपति बने थे। लेकिन उनके राज में हालात बिगड़ गए थे। युद्ध की वजह से खजाना खाली था। सरकारी तंत्र में भ्रष्टाचार फैल रहा था। 1972 में मुजीब ने विद्रोह रोकने के लिए रखी वाहिनी नाम की एक फोर्स बनाई। लेकिन उस फोर्स पर ही हत्या और रेप के इल्जाम लगे। जनता का मोह भंग उनसे होने लगा। फिर तारीख आई 14 अगस्त 1975 बांग्लादेश की फौज के कुछ बागी अफसरों ने मुजीब और उनके परिवार के 18 लोगों की हत्या कर दी। किस्मत से उनकी दो बेटियां शेख हसीना और शेख रिहाना उस वक्त जर्मनी में थी। इसके बाद सत्ता जियाउ रहमान के हाथ में आई। अगले दशक में देश ने एक और सैन्य शासक देखा हुसैन मोहम्मद इरशाद के हाथ में सत्ता गई। इन दोनों सैन्य शासकों ने एक ही एजेंडा चलाया। आवामी लीग का नामोनिशान मिटा दो। उन्होंने उन ताकतों को वापस जिंदा किया जो 1971 में आजादी के खिलाफ थी ताकि आवामी लीग की लोकप्रियता को टक्कर दी जा सके।
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जब दो दुश्मन हुए एक, फिर शुरू हुई बैटल ऑफ द बेगम्स
1990 के दशक के आखिर आखिर तक इरशाद के खिलाफ माहौल बनने लगा था। तब एक दिलचस्प वाकया हुआ। दो जानी दुश्मन एक साथ आ गई। शेख हसीना और खालिदा जिया दोनों ने मिलकर के इरशाद को गद्दी से उतार फेंका। लेकिन यह दोस्ती बस मतलब भर की थी। दोनों जब ताकतवर हुई तो 1991 से एक नया दौर शुरू हुआ जिसे बेगमों की जंग कहा जाता है। बैटल ऑफ द बेगम्स। एक ही ढर्रा था जो गद्दी पर बैठेगा वो सामने वाले का धंधा बंद करवा देगा। 1991 में खालिदा जीती। 1996 में हसीना जीती। 2001 में फिर खालिदा जिया जीत गई। 2006 आते-आते सड़कों पर खून खराबा शुरू हो गया था। जब नेताओं से बात नहीं संभली तो फौज ने कहा कि अब हम संभालेंगे। 2007 में इमरजेंसी लगा दी गई और हसीना खालिदा दोनों को जेल में डाल दिया गया। फिर 2008 में चुनाव हुए। शेख हसीना ने ऐसी वापसी की कि अगले 15 साल तक गद्दी पर बनी रहीं। इस दौरान जमात के नेताओं को फांसी हुई। 2018 में खालिदा जिया जेल गई।
शेख हसीना ने निधन पर क्या कहा?
बांग्लादेश की निर्वासित पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना ने मंगलवार को बांग्लादेश राष्ट्रवादी पार्टी (बीएनपी) की अध्यक्ष और पूर्व प्रधानमंत्री बेगम खालिदा जिया के निधन पर शोक व्यक्त करते हुए उनके निधन को देश के राजनीतिक जीवन के लिए एक बड़ी क्षति बताया। अवामी लीग ने अपने एक्स अकाउंट पर हसीना का शोक संदेश साझा किया। बयान में कहा गया मैं बीएनपी अध्यक्ष और पूर्व प्रधानमंत्री बेगम खालिदा जिया के निधन पर अपनी गहरी संवेदना व्यक्त करती हूं।
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27 नवंबर को ही बिगड़ गई थी हालत
27 नवंबर को उनकी हालत बिगड़ गई, जिसके बाद उन्हें अस्पताल के कोरोनरी केयर यूनिट (सीसीयू) में स्थानांतरित कर दिया गया। जिया के इलाज की देखरेख कर रहे चिकित्सा बोर्ड के सदस्य प्रोफेसर हुसैन ने उनकी हालत को बेहद नाजुक बताया था। जिया कई जटिल और दीर्घकालिक स्वास्थ्य समस्याओं से ग्रस्त थीं, जिनमें यकृत व गुर्दे की समस्याएं, हृदय रोग, उच्च रक्तचाप, मधुमेह, गठिया और संक्रमण संबंधी समस्याएं शामिल थीं।
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