पाकिस्तान के रक्षा प्रमुख और सेना अध्यक्ष फील्ड मार्शल असीम मुनीर के अंदर का मौलाना सामने आ गया है। हम आपको बता दें कि मुनीर ने भारत के साथ मई महीने में हुए सैन्य टकराव को लेकर एक चौंकाने वाला बयान दिया है। इस्लामाबाद में आयोजित नेशनल उलेमा कांफ्रेंस को संबोधित करते हुए उन्होंने दावा किया कि भारत द्वारा किए गए सैन्य हमलों के बाद पाकिस्तान को अल्लाह की विशेष मदद मिली और पाकिस्तानी सेना ने उसे महसूस किया। उनके अनुसार यह मदद चार दिनों तक चले संघर्ष के दौरान स्पष्ट रूप से नजर आई।
अपने भाषण में असीम मुनीर ने भारत के साथ संघर्ष को केवल सैन्य घटना के रूप में नहीं बल्कि धार्मिक संदर्भ में प्रस्तुत किया। उन्होंने कुरान की आयतें पढ़ीं और कहा कि पाकिस्तानी सेना को संघर्ष के दौरान ईश्वरीय हस्तक्षेप का अनुभव हुआ। उनके इस बयान को पाकिस्तान के भीतर सेना की छवि मजबूत करने और धार्मिक भावनाओं को उभारने की कोशिश के रूप में देखा जा रहा है। इसी भाषण में असीम मुनीर ने अफगानिस्तान की तालिबान सरकार को कड़ी चेतावनी भी दी। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान में होने वाली आतंकवादी घुसपैठ में बड़ी संख्या अफगान नागरिकों की है और तहरीक ए तालिबान पाकिस्तान के लड़ाकों में लगभग सत्तर प्रतिशत अफगान हैं। उन्होंने सवाल उठाया कि क्या अफगानिस्तान पाकिस्तान के बच्चों का खून बहाने की जिम्मेदारी नहीं लेगा।
पाकिस्तानी सेना प्रमुख ने तालिबान सरकार से साफ शब्दों में कहा कि उसे पाकिस्तान और टीटीपी में से किसी एक को चुनना होगा। उन्होंने यह भी कहा कि किसी इस्लामी राष्ट्र में जिहाद का एलान करने का अधिकार केवल देश को होता है, किसी व्यक्ति या संगठन को नहीं। बिना देश की अनुमति के जिहाद की बात करना अवैध और अवांछनीय है। असीम मुनीर ने पाकिस्तान की स्थापना की तुलना पैगंबर द्वारा स्थापित प्रारंभिक इस्लामी राज्य से भी की और कहा कि दुनिया के सत्तावन इस्लामी देशों में पाकिस्तान को हरमैन शरीफैन की रक्षा का सम्मान मिला है। हम आपको बता दें कि मुनीर इस पूरे भाषण में धार्मिक प्रतीकों और सैन्य शक्ति को एक साथ जोड़ने की स्पष्ट कोशिश दिखाई दी।
देखा जाये तो असीम मुनीर का बयान पाकिस्तान की वर्तमान रणनीतिक उलझनों और आंतरिक असुरक्षाओं का आईना है। जब कोई सैन्य प्रमुख आधुनिक युद्ध में हार या दबाव को ईश्वरीय हस्तक्षेप की भाषा में समझाने लगे, तो यह उसकी कमजोरी का संकेत होता है। भारत द्वारा किए गए सटीक हमलों ने यह साफ कर दिया कि आतंकवाद के ढांचे अब सुरक्षित नहीं हैं और पारंपरिक बयानबाजी से जमीनी हकीकत नहीं बदली जा सकती।
सामरिक दृष्टि से आपरेशन सिंदूर ने दक्षिण एशिया की सुरक्षा तस्वीर को नया मोड़ दिया है। भारत ने स्पष्ट कर दिया कि वह आतंकी हमलों का जवाब सीमा के उस पार जाकर देने में संकोच नहीं करेगा। इससे पाकिस्तान की वह रणनीति कमजोर पड़ी है जिसमें वह परमाणु धमकी और अंतरराष्ट्रीय सहानुभूति के भरोसे आतंकवाद को ढाल की तरह इस्तेमाल करता रहा है। पाकिस्तानी सेना प्रमुख का अफगानिस्तान को दिया गया अल्टीमेटम भी उतना ही खोखला दिखता है। अफगान तालिबान और पाकिस्तान के रिश्ते पहले ही अविश्वास से भरे हैं। तालिबान के सत्ता में आने के बाद टीटीपी को खुली छूट मिली है, जो पाकिस्तान के लिए गंभीर सिरदर्द बन चुका है। सीमा पार से होने वाले हमले पाकिस्तान की आंतरिक सुरक्षा को लगातार खोखला कर रहे हैं, लेकिन इस सच्चाई को स्वीकार करने की बजाय सारा दोष काबुल पर डाल देना आसान रास्ता है।
अफगानिस्तान की मौजूदा स्थिति भी किसी से छिपी नहीं है। वहां की सरकार अंतरराष्ट्रीय मान्यता के लिए संघर्ष कर रही है और आर्थिक संकट से जूझ रही है। ऐसे में पाकिस्तान की धमकी भरी भाषा हालात को सुधारने की बजाय और बिगाड़ सकती है। यदि पाकिस्तान सच में सीमा पार आतंकवाद रोकना चाहता है तो उसे दोहरे खेल से बाहर आना होगा, जिसमें वह कुछ संगठनों को अच्छा और कुछ को बुरा बताता है।
असीम मुनीर का यह कहना कि जिहाद का अधिकार केवल देश को है, अपने आप में एक विरोधाभास है। दशकों तक पाकिस्तान की धरती से पनपे आतंकी संगठनों को सरकार का मौन समर्थन मिलता रहा है। अब जब वही संगठन सरकार के लिए खतरा बन गए हैं, तो धार्मिक व्याख्याओं की आड़ में खुद को पाक साफ दिखाने की कोशिश हो रही है।
भारत के लिए यह घटनाक्रम एक स्पष्ट संदेश देता है कि पड़ोसी देश की नीति अभी भी भ्रम और अंतर्विरोध से भरी है। सामरिक स्तर पर भारत को अपनी सतर्कता और जवाबी क्षमता बनाए रखनी होगी। साथ ही अंतरराष्ट्रीय मंचों पर यह बात मजबूती से रखनी होगी कि आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई केवल शब्दों से नहीं, ठोस कार्रवाई से लड़ी जाती है।
कुल मिलाकर असीम मुनीर का भाषण आस्था, डर और दबाव का मिला जुला दस्तावेज है। इसमें आत्मविश्वास कम और असमंजस ज्यादा झलकता है। जब सेना प्रमुख ईश्वरीय मदद की बात करने लगें, तो समझ लेना चाहिए कि जमीन पर हालात उतने मजबूत नहीं हैं जितना दिखाने की कोशिश की जा रही है।
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बांग्लादेश में जहां हिंसा की खबरें लगातार सामने आ रही हैं और मौजूदा हालात बदतर स्थिति से गुजर रहे हैं। ऐसे में वहां की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना का पूरी स्थिति को लेकर एक बड़ा बयान सामने आया है। दरअसल न्यूज़ एजेंसी एएनआई को ईमेल पर दिए अपने एक इंटरव्यू में शेख हसीना ने मौजूदा हालात पर टिप्पणी की। सबसे पहले बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना ने देश लौटने की मांगों को खारिज कर दिया। उन्होंने कहा कि उनके खिलाफ चल रही कानूनी कार्रवाई पूरी तरह से राजनीतिक है और मौजूदा हालात में वह बांग्लादेश वापस नहीं जाएंगे। इस ईमेल इंटरव्यू में बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना ने भारत विरोधी बढ़ती भावनाओं पर बात करते हुए कहा। यह दुश्मनी जानबूझकर कट्टरपंथियों द्वारा फैलाई जा रही है। जिन्हें यूनुस शासन ने खुली छूट दी है। यही लोग हैं जिन्होंने भारतीय दूतावास की ओर मार्च किया। बिना किसी डर के अल्पसंख्यकों पर हमला किया जिसकी वजह से मुझे और मेरे परिवार को जान बचाकर देश छोड़ना पड़ा।
यूनुस ने ऐसे लोगों को सत्ता के पदों पर बिठाया है और दोषी आतंकवादियों को जेल से रिहा किया है। इसके साथ ही उन्होंने आगे कहा भारत के अधिकारियों और कर्मियों की सुरक्षा को लेकर भारत की चिंताएं पूरी तरह से जायज है। यह कहते हुए मुझे दुख हो रहा है कि एक जिम्मेदार सरकार राजनीतिक मिशनों की रक्षा करती है। उन्हें धमकी देने वालों पर कारवाई करती है। लेकिन इसके बजाय यूनुस गुंडों को संरक्षण देता है और उन्हें योद्धा कहकर महिमामंडित करता है। इसके साथ ही कट्टरपंथी शरीफ उस्मान हादी की हत्या का जिक्र करते हुए हसीना ने कहा यह घटना उनके हटने के बाद कानून व्यवस्था की पूरी तरह बिगड़ने का सबूत है जो अंतरिम सरकार में और भी बदतर स्थिति में पहुंच गई है। उन्होंने कहा कि हिंसा आम बात बन गई है जिससे देश के भीतर अस्थिरता बढ़ रही है और पड़ोसी देश भी चिंतित है।
इसके साथ ही हसीना ने कट्टर इस्लामी संगठनों के बढ़ते प्रभाव पर भी चिंता जताई है। उन्होंने आरोप लगाया कि यूनुस ने चरमपंथियों को मंत्रिमंडल में जगह दी है। दोषी आतंकियों को छोड़ा है और अंतरराष्ट्रीय आतंकी नेटवर्क से जुड़े संगठनों को सार्वजनिक जीवन में सक्रिय होने का मौका दिया है। जिसकी वजह से ही बांग्लादेश की आज ये स्थिति हो गई है। भारत के सिलीगुड़ी कॉरिडोर जिसे चिकन नेक कहा जाता है। बांग्लादेश में इसे लेकर दिए गए बयानों पर भी हसीना ने कहा कि यह सारे बयान गैर जिम्मेदाराना है और कोई भी जिम्मेदार नेता उस पड़ोसी को धमकी नहीं देगा जिस पर बांग्लादेश की व्यापार और क्षेत्र स्थिरता निर्भर करती हो। उनके अनुसार वे विचार बांग्लादेशी जनता की सोच क्यों नहीं दर्शाते? और यह विचार बांग्लादेश में लोकतंत्र बहाल होने के साथ ही खत्म हो जाएंगे। शेख हसीना ने पाकिस्तान और बांग्लादेश के बीच बढ़ते संबंधों पर भी टिप्पणी की।
उन्होंने कहा कि ढाका हमेशा से ही सबसे दोस्ती की नीति में विश्वास रखता है। लेकिन यूस का रवैया गलत है और पुराने साझेदारों को नाराज करने के बाद आज की यह स्थिति उपजी है। हसीना ने आगे कहा कि आप मुझसे यह उम्मीद नहीं कर सकते कि मैं अपनी राजनीतिक हत्या का सामना करने के लिए वापस बांग्लादेश लौटूं। उन्होंने दोहराया कि उन्होंने मुख्य सलाहकार मोहम्मद यूनुस को चुनौती दी थी कि इस मामले को द हहंग की अंतरराष्ट्रीय अदालत में पेश किया जाए। जहां उन्हें भरोसा है कि एक स्वतंत्र अदालत उन्हें निर्दोष साबित कर देगी।
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