सुनील-नरगिस दत्त को म्यूजिकल ट्रिब्यूट:प्रिया बोलीं- अच्छा काम ही सच्ची श्रद्धांजलि; वहीदा ने किया पुराने रिश्ते का जिक्र, मनीषा ने फाउंडेशन की सराहना की
मुंबई वर्ली के नेहरू ऑडिटोरियम में शुक्रवार की शाम को 'यादों की गीतमाला- दीपक कपाड़िया प्रेजेंट्स डाउन मेमोरी लेन' का धूमधाम से आयोजन हुआ। यह खास कॉन्सर्ट बॉलीवुड के आइकॉनिक जोड़ी सुनील दत्त और नरगिस दत्त को समर्पित था। छह मशहूर गायकों अनिल बाजपेयी, गुल सक्सेना, मुख्तार शाह, कविता मूर्ति, आलोक कटारे और शैलजा सुब्रमणियम ने उनके दौर के सदाबहार गाने पेश किए। अजय मदन के संगीत निर्देशन में ये गीत नॉस्टेल्जिया की बाढ़ ला गए। प्रशांत राव ने शानदार कमेंट्री की, तो दुर्लभ फोटोज ने दर्शकों को सुनील-नरगिस के करीब ले जाकर छू लिया। पूरी कमाई नरगिस दत्त फाउंडेशन को जाएगी, जो 1981 से गरीब कैंसर मरीजों की मदद कर रहा है। प्रिया दत्त बोलीं- बचपन की फोटो सबसे खास प्रिया दत्त ने कहा- आज की शाम बहुत स्पेशल है। जब हम यादों की गीत माला कह रहे हैं, तो ये शाम सिर्फ यादों से भरी है। जो गाने हैं, यहां दिखाए गए। उन गानों के साथ उनकी लाइफ के बहुत सारे किस्से भी शामिल हैं। जितने भी लोग इसे यहां देखने आए, वो उनकी लाइफ की जर्नी गीतों के साथ को देखे। सबसे बड़ी बात है कि आज की शाम का कार्यक्रम हाउसफुल रहा, इससे जाहिर होता है कि आज की युवा पीढ़ी भी उन गानों को कितना पसंद करती है। मिसेज दत्त और डार्लिंग जी बुक में शामिल खास पिक्चर्स के बारे में प्रिया दत्त ने कहा- यहां जो बहुत सारे फोटोग्राफर्स और छोटे वीडियो शामिल किए गए, वैसे लोगों ने पहले कभी नहीं देखे हैं। सबसे खूबसूरत फोटो पर बात करते हुए प्रिया दत्त ने कहा- मुझे लगता है कि हमारी जो बचपन की फोटो है, वो बेहद खास है। ये बहुत दुर्भाग्यपूर्ण था कि हमने अपनी मां के साथ बहुत कम समय बिताया। मैं जब 14 साल की थी, जब मेरी मां गुजरीं। ऐसे में वो जो फोटो और वीडियो हैं, वो मेरे दिल के सबसे करीब हैं। ‘मेरा साया’ का गीत मम्मी पापा की याद दिलाती है गानों पर बात करते हुए प्रिया दत्त ने कहा- हम छोटे थे। हमें मां की फिल्म ‘पड़ोसन’ के गाने बहुत पसंद आए। पापा का एक गाना था ‘मेरा साया’, मां के गुजरने के बाद हम लोग उस गाने से जुड़ाव महसूस करने लगे। क्योंकि वो गाना पापा को मां की याद दिलाता है। नरगिस दत्त के जाने के बाद प्रिया दत्त ने पहली बार अपनी मां को सिर्फ मां नहीं, एक अदाकारा के रूप में देखना शुरू किया। वह बताती हैं कि जब नरगिस जी बीमार थीं, तब उन्होंने उनकी ज्यादा फिल्में नहीं देखी थीं। लेकिन उनके गुजर जाने के बाद उन्होंने कुछ चुनिंदा फिल्में देखीं। जिनमें आईकॉनिक ‘मदर इंडिया,’ हल्की-फुल्की रोमांटिक ‘चोरी-चोरी’ और गहराई से भरी फिल्म ‘रात और दिन‘ शामिल हैं। मां की फिल्म ‘रात और दिन’ दिल के सबसे करीब प्रिया के दिल के सबसे करीब फिल्म ‘रात और दिन’ है। वह कहती हैं- यह बहुत अलग तरह की फिल्म थी, जिसमें नरगिस ने सिजोफ्रेनिया महिला का किरदार निभाया था। एक ही इंसान के भीतर दो अलग-अलग पर्सनैलिटी। यह चुनौतीपूर्ण रोल और उसकी संवेदनशील प्रस्तुति प्रिया को बहुत प्रभावित करती है। इसके अलावा ‘अंदाज’ को वह उनकी एक और समय से आगे की फिल्म मानती हैं। वह मानती हैं कि नरगिस ने अपने करियर में हर तरह के किरदार निभाकर खुद को एक बहुमुखी कलाकार साबित किया। इसी तरह यादों की गलियों से गुजरती एक और कहानी है, ‘यादों की गीतमाला’ की। जब दीपक कपाड़िया यह आइडिया लेकर प्रिया दत्त के पास पहुंचे, तो उनके मन में पहला सवाल यही था कि क्या लोग आज भी पुराने गाने सुनते हैं? दीपक ने उन्हें आश्वस्त किया कि उनके शो हमेशा हाउसफुल रहते हैं। प्रिया ने तय किया कि वह एक बार जाकर खुद देखती हैं। हॉल नॉस्टेल्जिया से भरा था और हर धुन में एक दौर की खुशबू थी शो के दिन उनका इरादा था कि थोड़ी देर रुककर निकल जाएंगी, लेकिन माहौल कुछ ऐसा था कि वह उठ ही नहीं पाईं। लोग एक सुर में पुराने गाने गा रहे थे, हॉल नॉस्टेल्जिया से भरा था और हर धुन में एक दौर की खुशबू थी। प्रिया कहती हैं, सब कुछ इतना सुंदर और भावनात्मक था कि उन्होंने पूरा शो देखा। शो खत्म होने के बाद उन्होंने दीपक कपाड़िया से कहा कि क्यों न उनके माता-पिता नरगिस और सुनील दत्त के गानों पर एक खास शो किया जाए। इस शो को उन्होंने सिर्फ गानों तक सीमित रखने के बजाय थोड़ा अलग तरीके से प्लान किया। गानों के बीच में फोटो और वीडियो के जरिए उनके माता-पिता की जर्नी दिखाने का आइडिया सामने आया। प्रिया ने यह भी फैसला किया कि इसे सिर्फ एक शहर तक नहीं, बल्कि अलग-अलग शहरों में ले जाया जाएगा, ताकि ज्यादा से ज्यादा लोग इस विरासत से जुड़ सकें। पेरेंट्स से मिलती है एनर्जी अपनी निजी जिंदगी के दुखों के बीच भी प्रिया दत्त जिस ऊर्जा के साथ काम करती हैं, वह भी उनके माता-पिता की ही देन है। हाल ही में सासु मां के निधन जैसी व्यक्तिगत क्षति के बावजूद वह नरगिस दत्त फाउंडेशन के जरिए कैंसर पेशेंट्स, बच्चों की शिक्षा और अब एनिमल वेलफेयर के लिए लगातार सक्रिय हैं। वह साफ कहती हैं, उनकी एनर्जी उन्हें उनके पेरेंट्स से मिलती है। प्रिया याद करती हैं कि उनकी मां हमेशा कहती थीं कि कोई भी दुख आए, काम नहीं रुकना चाहिए। खासकर वह काम, जो लोगों की भलाई के लिए किया जा रहा हो, उसे चलते रहना बहुत जरूरी है। यही सोच नरगिस दत्त फाउंडेशन के हर काम में दिखती है। फाउंडेशन पिछले करीब 40 साल से कैंसर पेशेंट्स के लिए काम कर रहा है और अब बच्चों की पढ़ाई में भी मदद कर रहा है। आज लगभग 500 बच्चों को स्कॉलरशिप मिलती है और इनमें से कई स्टूडेंट्स बड़ी कंपनियों में अच्छे पदों पर काम कर रहे हैं। इन सफलताओं को देखकर प्रिया को गहरी संतुष्टि मिलती है। अच्छा काम करते रहना ही असली श्रद्धांजलि है जब उनसे पूछा जाता है कि लोग उनमें नरगिस जी और सुनील दत्त जी की झलक देखते हैं, तो वह बेहद विनम्र हो जाती हैं। वह कहती हैं कि यह बात सुनकर वह बहुत हंबल और प्राउड महसूस करती हैं। प्रिया मानती हैं कि वह कभी भी अपने माता-पिता की जगह नहीं ले सकतीं, लेकिन उनकी वैल्यूज को फॉलो करके, अपनी क्षमता के अनुसार अच्छा काम करते रहना ही उनकी असली श्रद्धांजलि है। स्पेशल गेस्ट्स ने साझा कीं यादें स्पेशल गेस्ट वहीदा रहमान ने कहा- यहां आकर बहुत अच्छा लग रहा है। पुरानी यादें ताजा हो गईं। सुनील दत्त के साथ मैंने पांच फिल्में कीं। नरगिस जी से मेरी गहरी दोस्ती थी। जब भी वो विदेश या शूटिंग पर आतीं, तो हम साथ बैठकर खूब बातें करते और हंसते थे। आज सारी यादें ताजा हो गईं। प्रिया दत्त मेरे सामने पैदा हुई। संजू (संजय दत्त) के जन्म के समय मैं घर गई थी। इस घर से मेरा बहुत पुराना नाता है, इसलिए आज आना ही था। कैंसर सर्वाइवर अभिनेत्री मनीषा कोइराला, जो फिल्म 'संजू' में नरगिस दत्त का किरदार निभा चुकी हैं। अपनी मां सुषमा कोइराला के साथ मौजूद रहीं। मनीषा कोइराला ने कहा- मैं बहुत सम्मानित महसूस कर रही हूं। प्रिया जी ने मुझे कॉल किया तो मैं यहां चली आई। यह फाउंडेशन लीजेंडरी नरगिस दत्त जी के नाम पर है और बहुत अच्छा काम कर रही है। यह कैंसर पेशेंट्स को बहुत सपोर्ट देते हैं। मुझे पता है कि जो लोग कैंसर से जूझ रहे हैं, उनके लिए सपोर्ट कितना जरूरी होता है। यह संस्था सालों से कैंसर पेशेंट्स के लिए काम कर रही है, इसके लिए मैं प्रिया जी को दिल से धन्यवाद देती हूं।
राज कपूर की 101वीं बर्थ एनिवर्सरी:नरगिस की हील्स को देख समझ गए रिश्ता हुआ खत्म, चीन में पॉपुलैरिटी देख अटल जी हुए थे हैरान
एक ऐसे एक्टर, जिनके चेहरे पर मासूमियत, आंखें गहरी नीली और चाल में चार्ली चैपलिन जैसी बात थी। मनोरंजन के साथ उन्होंने अपनी फिल्मों में आम आदमी की बातें कहीं। गरीबी, बेरोजगारी और अमीर-गरीब के बीच की खाई जैसे जटिल विषयों को भी सहजता से परदे पर उतारा। जी हां, हम बात कर रहे हैं भारतीय सिनेमा के शोमैन यानी राज कपूर की। राज कपूर की आज 101वीं बर्थ एनिवर्सरी है। इस मौके पर आइए, उनकी जिंदगी से जुड़े कुछ किस्से जानते हैं। चार्ली चैपलिन की फिल्में देख रोया करते थे राज कपूर राज कपूर को भारत का चार्ली चैपलिन भी कहा जाता था क्योंकि उन्होंने चार्ली चैपलिन के ट्रैजिक-कॉमिक किरदार को भारतीय सिनेमा में अपनाया। श्री 420 और मेरा नाम जोकर जैसी फिल्मों में इसकी झलक देखने को मिली। महेंद्र कौल को दिए इंटरव्यू में राज कपूर ने बताया था, “चार्ली चैपलिन के काम और उनकी फिल्मों का मैं बचपन से बहुत बड़ा फैन रहा हूं। बचपन में अक्सर उनकी फिल्में देखा करता था। बच्चों के लिए तो यह कॉमेडी की एक सीरीज जैसी होती थी। बचपन में बच्चे चार्ली चैपलिन की फिल्में देखा करते थे, लेकिन मेरे लिए चैपलिन की फिल्में कुछ और ही मायने रखती थीं। अक्सर न जाने क्यों, जब लोग उनकी फिल्मों पर हंसते थे, तो मेरी आंखें भर आती थीं, मैं रोया करता था।” उन्होंने आगे कहा था, “शायद यही वजह रही कि जब मैं बड़ा हुआ और फिल्मों में आया, तो चैपलिन साहब के उस किरदार से बहुत प्रभावित हुआ जो हमेशा अपनी फिल्मों में एक ऐसे आदमी का रोल निभाते थे जो कहीं से आता है, कहीं चला जाता है; न उसका कोई रिश्ता होता है, न कोई ठिकाना। मुझे लगता था, शायद चैपलिन साहब मेरे बारे में कुछ कह रहे हैं।” 'मैं बस में भी जाऊं, तो लोग कहेंगे - राज कपूर बस में बैठा है' राज कपूर के बेटे रणधीर कपूर ने द कपिल शर्मा शो में बताया था कि एक बार एक भिखारी ने उनका मजाक उड़ाया, क्योंकि वह छोटी कार चलाते थे। भिखारी ने कहा था, 'तुम ऐसी गाड़ी में जाते हो? पिक्चर में तो लंबी-लंबी गाड़ियां होती हैं!' इस बात से रणधीर कपूर के ईगो को इतनी ठेस पहुंची कि उन्होंने अपनी पत्नी बबिता कपूर से कुछ पैसे और अपने प्रोड्यूसर्स से एडवांस लेकर एक शानदार कार का लेटेस्ट मॉडल खरीद लिया। फिर वह नई कार लेकर अपने पिता राज कपूर के पास पहुंचे। राज कपूर बेटे के लिए खुश थे, लेकिन जब रणधीर ने सुझाव दिया कि वे भी वैसी ही कार लें, तो राज कपूर ने कहा था, "बेटे, मैं अगर बस में भी जाऊंगा, तो लोग कहेंगे, 'राज कपूर बस में बैठा है।' तुम्हें शानदार कार की जरूरत है, क्योंकि लोग गाड़ी को भी देखेंगे और तुम्हें भी कि उस गाड़ी में रणधीर कपूर जा रहा है।" अटल जी ने भी उनकी लोकप्रियता की सराहना की थी राज कपूर को सोवियत यूनियन में बेहद लोकप्रियता हासिल थी। उनकी फिल्म आवारा (1951), जिसे रूस में 'ब्रोडियागा' या 'द वैगाबॉन्ड' नाम से रिलीज किया गया था, की वहां लगभग 6.4 करोड़ टिकटें बिकी थीं। यह सोवियत इतिहास की तीसरी सबसे ज्यादा देखी जाने वाली विदेशी फिल्म थी। जब राज कपूर मॉस्को पहुंचे, तो हजारों प्रशंसकों ने एयरपोर्ट पर उनका स्वागत किया और उनकी टैक्सी को कंधों पर उठाकर सड़कों पर घुमाया। सोवियत संघ के अलावा उनकी फिल्में चीन, तुर्की, मध्य-पूर्व और अफ्रीका में भी बहुत चलीं। चीन के नेता माओत्से-तुंग गाने 'आवारा हूं' के बड़े फैन थे। यहां तक कि पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने भी राज कपूर से एक बार कहा था कि आप चीन में भी बहुत लोकप्रिय हैं। यह बात उनके बेटे रणधीर कपूर ने द प्रिंट को दिए इंटरव्यू में बताई थी। नरगिस की हील्स को घूरते हुआ था प्यार खोने का एहसास भारतीय सिनेमा के इतिहास में राज कपूर और नरगिस की प्रेम कहानी जितनी खूबसूरत थी, उतनी ही दर्दभरी भी। यह कहानी शुरू हुई थी 1948 में, जब राज कपूर ने अपनी पहली निर्देशित फिल्म आग के लिए नरगिस को लीड एक्ट्रेस के रूप में कास्ट किया। फिल्म तो खास नहीं चली, लेकिन इसने एक ऐसी जोड़ी को जन्म दिया, जिसकी केमिस्ट्री लोगों को बहुत पसंद आई। 1949 में आई फिल्म बरसात ने दोनों को सुपरस्टार बना दिया। फिल्म का वह मशहूर पोस्टर, जिसमें बारिश के बीच नरगिस राज कपूर के कंधे पर झुकी हैं, आगे चलकर आरके फिल्म्स का प्रतीक चिह्न बन गया। पर्दे पर यह जोड़ी जितनी परिपूर्ण दिखती थी, पर्दे के पीछे उतनी ही गहरी नजदीकियों से गुजर रही थी। लेकिन इस रिश्ते की सबसे बड़ी बाधा थी राज कपूर की शादी। वो शादीशुदा थे और उनके बच्चे भी थे। नरगिस ने नौ साल तक इंतजार किया, इस उम्मीद में कि राज एक दिन उन्हें अपना लेंगे, लेकिन जब यह साफ हो गया कि वे परिवार नहीं छोड़ सकते, तो नरगिस ने चुपचाप यह रिश्ता खत्म कर दिया। 1957 में नरगिस की जिंदगी में सुनील दत्त आए। फिल्म मदर इंडिया की शूटिंग के दौरान सेट पर आग लग गई थी। नरगिस उस आग में फंस गई थीं और सुनील दत्त ने अपनी जान की परवाह किए बिना उन्हें बचा लिया। कहा जाता है, उसी पल नरगिस को एहसास हुआ कि दुनिया में कोई है जो उन्हें दिल से चाहता है। यही से शुरू हुई नरगिस और सुनील दत्त की लव स्टोरी। जबकि राज कपूर नहीं चाहते थे कि नरगिस उनकी जिंदगी से जाएं। यहां तक कि जब उनका रिश्ता खत्म हुआ, तो उन्होंने इसे धोखा समझा। पत्रकार सुरेश कोहली को दिए इंटरव्यू में राज कपूर ने कहा था, “वो मुझसे मिलने आई थी, ऊंची हील्स पहने हुए। मैं बस उसकी हील्स को बीस मिनट तक देखता रहा, तब समझ गया, अब वो मेरी नहीं रही।” गुजरात में मदर इंडिया की शूटिंग के दौरान नरगिस ने अपने ड्राइवर को राज कपूर के यहां भेजा, यह कहते हुए कि “बीबी जी ने सैंडल्स और हारमोनियम मंगवाया है।” जिसको लेकर राज कपूर ने इंटरव्यू में कहा था, “मैं उसी वक्त समझ गया, उसकी जिंदगी में कोई ऊंचे कद का शख्स आ गया है।” वह व्यक्ति थे सुनील दत्त, जिनकी लंबाई छह फीट थी। बता दें कि साल 1958 में नरगिस ने सुनील दत्त से शादी की थी। रणबीर का नाम उनके दादा के पूरे नाम पर है बॉलीवुड एक्टर रणबीर कपूर का नाम उनके दादा राज कपूर के पूरे नाम पर रखा गया है। राज कपूर का पूरा नाम रणबीर राज कपूर था। नेटफ्लिक्स के शो डाइनिंग विद द कपूर्स में रणबीर ने खुद बताया था, 'मेरा नाम असल में मेरे दादाजी का नाम है। उनका असली नाम रणबीर राज कपूर था। वे इसी नाम से अपने चेक पर साइन करते थे। जब मैं पैदा हुआ, तो मेरे परिवार में ‘R’ से शुरू होने वाले नाम खत्म हो रहे थे। तब मेरे दादाजी के भाई, मिस्टर शम्मी कपूर ने कहा कि चूंकि आपने यह नाम इस्तेमाल नहीं किया है, तो चलिए यह नाम रणबीर को दे देते हैं। इस तरह मेरा नाम रणबीर पड़ा।” टीनू आनंद के पिता ने मारा था थप्पड़ मशहूर एक्टर टीनू आनंद के पिता इंदर राज आनंद अपने समय के टॉप राइटर माने जाते थे। उन्होंने कई सुपरहिट फिल्मों की कहानी और संवाद लिखे थे, लेकिन एक रात, फिल्म ‘संगम’ की रिलीज पार्टी के दौरान उन्होंने राज कपूर को थप्पड़ मार दिया था। टीनू आनंद ने रेडिफ को दिए एक इंटरव्यू में बताया था, “मेरे पिता और राज कपूर के बीच किसी बात को लेकर बहस हो गई थी। बात इतनी बढ़ गई कि पापा ने गुस्से में राज कपूर को थप्पड़ मार दिया।” इस झगड़े के बाद चारों ओर सन्नाटा छा गया। उस एक थप्पड़ का असर इतना गहरा था कि अगले ही दिन फिल्म इंडस्ट्री ने इंदर राज आनंद का बॉयकॉट कर दिया। टीनू आनंद के अनुसार, "राज कपूर, वैजयंतीमाला, शंकर-जयकिशन, हसरत जयपुरी और राजेंद्र कुमार सभी ने पिता से नाता तोड़ लिया। एक ही रात में उनके हाथ से 18 फिल्में निकल गईं।" करियर का यह झटका इंदर राज आनंद बर्दाश्त नहीं कर पाए। मानसिक तनाव और दुख के चलते उन्हें दिल का दौरा पड़ा और कुछ समय बाद उनका निधन हो गया। टीनू आनंद ने बताया था कि उस कठिन समय में राज कपूर लंदन में शूटिंग कर रहे थे, लेकिन उन्होंने अपनी पत्नी कृष्णा राज कपूर को इंदर राज आनंद से माफी मांगने और उनका हाल जानने के लिए भेजा था। फिल्म से ज्यादा खाने-पीने पर खर्च करते थे राज कपूर बॉलीवुड डायरेक्टर कुकू कोहली, जिन्होंने ब्लॉकबस्टर फिल्म फूल और कांटे बनाई थी, उन्होंने अपने करियर की शुरुआत राज कपूर के असिस्टेंट डायरेक्टर के रूप में की थी। हाल ही में दैनिक भास्कर के साथ बातचीत में उन्होंने राज कपूर के बारे में कई बातें शेयर कीं। कुकू कोहली ने बताया कि फिल्म बॉबी से मेरा करियर शुरू हुआ था और इसके बाद मैं पूरे 11 साल तक राज जी के साथ रहा। लाइटिंग से लेकर एडिटिंग तक, फिल्म का कोई डिपार्टमेंट नहीं था जिसमें उन्होंने हमें ट्रेन न किया गया हो। कोहली ने यह भी बताया कि राज जी पैसे के लिए नहीं, पैशन के लिए फिल्म बनाते थे। मेरा नाम जोकर के वक्त सब कुछ गिरवी रख दिया गया था, लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं मानी। बाद में उन्होंने फिल्म बॉबी बनाई, नए चेहरे लाए और कमाल कर दिखाया। कोहली ने बताया, “उनकी पिक्चर जितने में बनती थी, उससे ज्यादा तो खर्चा सेट पर खाने-पीने और क्रू की देखभाल में चला जाता था। आर.के. स्टूडियो में जो भी आता, उसका स्वागत बहुत शानदार तरीके से होता था।” कोहली के अनुसार, “राज कपूर कई बार 18 घंटे तक लगातार काम करते थे। गाना रिकॉर्ड होने से पहले ही पूरा विज़ुअल उनके दिमाग में तैयार रहता था।” कुकू कोहली ने राज कपूर को याद करते हुए यह भी बताया कि राज जी हमेशा रियल लोकेशन पर शूट करना पसंद करते थे। उन्होंने कहा कि फिल्म बॉबी का क्लाइमैक्स सीन बेंगलुरु के पास होगेनक्कल में शूट हुआ था, जहां डिंपल कपाड़िया और ऋषि कपूर को पहाड़ी से पानी में कूदना था। यह सीन बेहद खतरनाक था। पहले बॉडी डबल्स ने जंप मारा, लेकिन राज कपूर को सीन को असली दिखाना था, इसलिए दोनों कलाकारों ने खुद वहा जंप किया था। कुकू कोहली के अनुसार, जब ऋषि कपूर के शॉट्स पूरे हो गए, तब डिंपल कपाड़िया के शॉट्स शुरू हुए। पानी में बहते हुए कपाड़िया का सीन फिल्माया जा रहा था। बीच-बीच में रस्सियां बांधी गई थीं, ताकि कोई बह न जाए, लेकिन पानी का बहाव इतना तेज था कि एक्ट्रेस सचमुच बह गईं। वह बहती चली गईं और आगे जाकर जो रस्सी बंधी थी, किसी तरह उनका हाथ उससे टकरा गया। उसी कोने में प्राण साहब भी शॉट देने के बाद खड़े थे। उन्होंने तुरंत कपाड़िया की कलाई पकड़ ली और बाकी लोग भी दौड़ पड़े। वह एक बहुत क्लोज सेव था। इसी तरह ‘बॉबी’ के एक और सीन में, रामगढ़ की गर्मी में लेदर जैकेट पहने ऋषि कपूर बेहोश हो गए थे। ----------------------------------------------------------------- बॉलीवुड की यह खबर भी पढ़िए... रजनीकांत@75, गर्लफ्रेंड के कहने पर फिल्मों में आए:पहली फिल्म में 15 मिनट का रोल, डिस्ट्रीब्यूटर्स बोले थे- करियर खत्म; जानिए थलाइवा के दमदार किरदार साल 1975 की बात है। तमिल फिल्म इंडस्ट्री में एक ऐसे व्यक्ति ने कदम रखा, जो कभी बस कंडक्टर की नौकरी करता था, लेकिन उसके व्यक्तित्व में एक अलग ही चमक थी। चलने, बोलने और व्यवहार करने का ऐसा अंदाज कि बस कंडक्टर रहते हुए ही लोग उसके दीवाने हो जाते थे। पूरी खबर यहां पढ़ें..
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