तेंदुओं के हमले कम करने के लिए जंगल में बकरियां छोड़ने का सुझाव हास्यास्पद: Ajit Pawar
महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री अजित पवार ने राज्य के वन मंत्री के इस बयान को शनिवार को हास्यास्पद बताया कि मानव बस्तियों से तेंदुओं को दूर रखने के लिए जंगलों में बकरियां छोड़ी जानी चाहिए। पवार ने कटाक्ष करते हुए कहा कि फिर तो तेंदुओं के अलावा, ग्रामीण भी इस शिकार का आनंद उठाया करेंगे।
पवार ने यहां संवाददाताओं से अनौपचारिक बातचीत के दौरान यह बात कही और बताया कि यह विचार संभवतः वन विभाग का होगा। उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा, “तेंदुओं के बजाय ग्रामीण भी जंगल में छोड़ी गई बकरियों को शिकार करेंगे।”
महाराष्ट्र के वन मंत्री गणेश नाइक ने सुझाव दिया था कि वन अधिकारी जंगलों में बड़ी संख्या में बकरियां छोड़ें ताकि तेंदुए शिकार की तलाश में मानव बस्तियों में प्रवेश न करें।
मंत्री ने कहा था, “अगर तेंदुओं के हमलों में चार लोग मारे जाते हैं, तो राज्य को एक करोड़ रुपये मुआवजे के तौर पर देना पड़ता है इसलिए मैंने अधिकारियों से कहा कि मौत के बाद मुआवजा देने के बजाय एक करोड़ रुपये की बकरियां जंगल में छोड़ दी जाएं, ताकि तेंदुओं को मानव बस्तियों में आने की आवश्यकता न पड़े।”
जब सरकार से तेंदुओं से जुड़े बढ़ते मामलों से निपटने की योजना के बारे में पूछा गया, तो पवार ने कहा कि तेंदुए महाराष्ट्र के कुछ क्षेत्रों में, विशेष रूप से गन्ने की खेती वाले इलाकों में प्रजनन करते और रहते हैं। उन्होंने बताया कि सरकार ने वनतारा चिड़ियाघर से भी जानकारी ली थी, जिसने कहा कि वह केवल 50 तेंदुओं को ही संभाल सकता है।
पवार ने कहा, “मैंने सुना है कि महाराष्ट्र में लगभग 2,000 तेंदुए हैं। ऐसी स्थिति में हमें अन्य उपायों पर भी विचार करना होगा।” उन्होंने कहा कि सरकार मौजूदा बचाव केंद्र की क्षमता बढ़ाने और इस समस्या से निपटने के लिए नए केंद्र स्थापित करने पर काम कर रही है। राज्य वन विभाग के अनुसार, अहिल्यानगर, पुणे और नासिक जिले तेंदुओं से संबंधित सबसे अधिक मामले सामने आते हैं।
कोडिन युक्त कफ सिरप के लाइसेंस धारकों को राहत, गिरफ्तारी पर रोक
कोडिन घटक वाले कफ सिरप के कुछ लाइसेंस धारकों को राहत प्रदान करते हुए इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने उनकी गिरफ्तारी पर अगली सुनवाई तक शुक्रवार को रोक लगा दी और सुनवाई की अगली तिथि 17 दिसंबर तय की।
उत्तर प्रदेश के विभिन्न पुलिस थानों में दर्ज प्राथमिकियों को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए उक्त आदेश न्यायमूर्ति सिद्धार्थ वर्मा और न्यायमूर्ति अचल सचदेव की पीठ ने पारित किया।
याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वकील ने दलील दी कि यह मामला एनडीपीएस अधिनियम के तहत नहीं चलाया जाना चाहिए था क्योंकि कथित तौर पर जो घटक सिरप में पाए गए वे एनडीपीएस अधिनियम की धारा 2 (11) के तहत परिभाषित “विनिर्मित औषधि” नहीं थे।
उन्होंने कहा कि एनडीपीएस अधिनियम के तहत भारत सरकार द्वारा 1985 में जारी अधिसूचना के मुताबिक, जिस घटक को लेकर याचिकाकर्ताओं पर मुकदमा चलाया जा रहा है, वह सरकारी आदेश के उपबंध 35 के तहत आता है और उसके मुताबिक, वह घटक एक “विनिर्मित औषधि” नहीं था।
उन्होंने कहा कि यदि इन याचिकाकर्ताओं पर कोई मुकदमा चलाया जाना चाहिए था तो वह औषधि एवं कॉस्मेटिक्स अधिनियम, 1940 के तहत चलाया जाना चाहिए था ना कि एनडीपीएस अधिनियम के तहत।
अदालत ने कहा, “चूंकि याचिकाकर्ताओं के वकील ने कहा है कि सभी याचिकाकर्ता जांच में सहयोग करने के इच्छुक हैं, इसलिए जांच जारी रह सकती है, लेकिन अगली सुनवाई तक उन्हें गिरफ्तार नहीं किया जाएगा।”
अदालत ने कहा, “यह कहने की जरूरत नहीं है कि जब भी उन्हें बुलाया जाएगा, वे निश्चित तौर पर जांच अधिकारी के समक्ष पेश होंगे। हमने याचिकाकर्ताओं के वकील के आश्वासन पर उक्त आदेश पारित किया है।
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