PM मोदी के कार्यक्रम के बाद लखनऊ में 170 भेड़ों की मौत, क्या है माजरा? CM योगी ने दिए तत्काल जांच के आदेश
उत्तर प्रदेश के लखनऊ से एक दर्दनाक खबर साने आयी है जहां अजीब तरह से 170 भेड़े अपने आप मरती चली गयी। यह रहस्यमय मौतें आखिर कैसे हुई है क्या कोई साजिश है यह कोई राष्ट्र विरोधी प्रयोग किया गया है, यह रहस्यमय मौतें अपने आप में कई सवाल खड़े कर रहे हैं। ऐसे में इस मामले की जांच हाई लेवल पर की जाएगी।लखनऊ के मड़ियांव क्षेत्र में राष्ट्र प्रेरणा स्थल के आसपास के इलाके में करीब 170 भेड़ों की रहस्यमय तरीके से मौत मामले में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने संज्ञान लेते हुए जांच के आदेश दिए हैं और प्रत्येक भेड़ की मौत के लिए 10 हजार रुपए के मुआवजे की घोषणा भी की है।
प्रधानमंत्री मोदी के कार्यक्रम के बाद राष्ट्र प्रेरणा स्थल के आसपास के 170 भेड़ों की अचानक मौत?
गैर-सरकारी संगठन ‘आसरा- द हेल्पिंग हैंड्स ट्रस्ट’ की संस्थापक चारू खरे ने मड़ियांव थाने में दी गयी एक शिकायत में कहा, ‘‘प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के हाल ही में हुए कार्यक्रम के बाद राष्ट्र प्रेरणा स्थल के आसपास के इलाके में लगभग 170 भेड़ों की अचानक मौत हो गई। प्रथम दृष्ट्या यह पता नहीं है कि इन भेड़ों की मौत कोई अपशिष्ट खाने से हुई या किसी अज्ञात व्यक्ति ने कथित तौर पर उन्हें जहर दिया था।’’
भेड़ों की रहस्यमय परिस्थितियों में हुई मौत
खरे ने बताया कि सोमवार को दोपहर करीब 12 बजे उनकी संस्था को इस मामले की जानकारी मिली थी। खरे ने बताया कि उन्होंने पुलिस से मामले की जांच की मांग करते हुए कहा है कि भेड़ों की रहस्यमय परिस्थितियों में हुई मौत के असली कारणों का पता लगाने के लिए उनके शवों का पोस्टमार्टम किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि इस मामले में अगर कोई लापरवाही पाई जाती है या जहर दिए जाने की पुष्टि होती है तो आरोपी के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जानी चाहिए। ‘आसरा- द हेल्पिंग हैंड्स ट्रस्ट’ इस मामले की जांच में हरसंभव मदद करेगा।
घटना ‘बहुत गंभीर’ और ‘संवेदनशील’ है
खरे ने यह भी कहा कि यह घटना ‘बहुत गंभीर’ और ‘संवेदनशील’ है। जानवरों के प्रति क्रूरता और लापरवाही की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता है। अगर समय पर निष्पक्ष जांच नहीं की गई, तो भविष्य में इस तरह की घटना दोबारा हो सकती है। इस बीच, मड़ियांव के थानाध्यक्ष शिवानंद मिश्रा ने बताया कि पुलिस मामले की जांच कर रही है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भेड़ों की रहस्यमय परिस्थितियों में मौत के मामले का संज्ञान लेते हुए इसकी जांच के आदेश दिए हैं।
बांग्लादेश की राजनीति का एक युग समाप्त! पूर्व पीएम खालिदा जिया का 80 की उम्र में निधन, शेख हसीना से दशकों चली थी प्रतिद्वंद्विता
बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (BNP) की चेयरपर्सन और पूर्व प्रधानमंत्री खालिदा जिया का मंगलवार तड़के 80 साल की उम्र में निधन हो गया। डेली स्टार की रिपोर्ट के अनुसार, दशकों तक देश की राजनीति में एक प्रमुख हस्ती रहीं जिया, शेख हसीना की मुख्य प्रतिद्वंद्वी थीं, जो 2024 में देशव्यापी अशांति के बीच भागने पर मजबूर होने के बाद अब नई दिल्ली में निर्वासन में रह रही हैं। खालिदा पिछले कई महीनों से गंभीर हालत में थीं और ढाका के एवरकेयर अस्पताल के इंटेंसिव केयर यूनिट में उनका इलाज चल रहा था।
खालिदा जिया और शेख हसीना के बीच दशकों चली प्रतिद्वंद्विता ने एक पीढ़ी तक बांग्लादेश की राजनीति को परिभाषित किया। जिया पर कई भ्रष्टाचार के मामले दर्ज थे, जिन्हें उन्होंने राजनीतिक रूप से प्रेरित बताया था।
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जनवरी 2025 में उच्चतम न्यायालय ने उनके खिलाफ अंतिम भ्रष्टाचार मामले में उन्हें बरी कर दिया था, जिससे फरवरी में होने वाले चुनाव में उनके उम्मीदवार बनने का रास्ता साफ हो गया था। वह ब्रिटेन में इलाज कराने के बाद मई में स्वदेश लौटी थीं। इससे पहले जनवरी की शुरुआत में बांग्लादेश की अंतरिम सरकार ने उन्हें विदेश यात्रा की अनुमति दी थी, जबकि शेख हसीना की सरकार ने इससे पहले कम से कम 18 बार उनके अनुरोधों को खारिज किया था। पिछले कई दिनों से जिया की तबियत बहुत खराब थी।
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देर रात आई खबरों में उनके चिकित्सकों के हवाले से बताया गया था कि जिया की हालत और बिगड़ जाने की वजह से उन्हें राजधानी के एक विशेष निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया है। निजी समाचार एजेंसी यूएनबी के अनुसार, मेडिकल बोर्ड के सदस्य जियाउल हक ने कहा था, “खालिदा जिया की हालत बेहद गंभीर है।”
इस दौरान उनके बड़े बेटे और बीएनपी के कार्यवाहक अध्यक्ष तारिक रहमान सहित परिवार के करीबी सदस्य ढाका के एवरकेयर अस्पताल में उनसे मिलने पहुंच गए थे। जियाउल हक के अनुसार, जिया को “जीवन रक्षक प्रणाली ” पर रखा गया था और उन्हें नियमित रूप से किडनी डायलिसिस की जरूरत थी।
उन्होंने कहा कि डायलिसिस रोकते ही उनकी समस्या बढ़ जाती थी। खालिदा जिया का विवाह देश के पूर्व राष्ट्रपति जियाउर रहमान से हुआ था, जिनकी 1981 में एक सैन्य तख्तापलट के दौरान हत्या कर दी गई थी। इसके बाद जिया ने सैन्य तानाशाही के खिलाफ जन आंदोलन खड़ा करने में अहम भूमिका निभाई, जिसके परिणामस्वरूप 1990 में तानाशाही का पतन हुआ। जिया ने 1991 में पहली बार प्रधानमंत्री पद संभाला और 2001 से एक बार फिर इस पद पर रहीं। उन चुनावों में और इसके बाद कई चुनावों में उनकी मुख्य प्रतिद्वंद्वी शेख हसीना रहीं।
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