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'एक्स' पर Mirwaiz Umar Farooq का प्रोफाइल अपडेट: क्या हुर्रियत से दूरी बना रहे हैं अलगाववादी नेता? 'हुर्रियत अध्यक्ष' पदनाम हटाया

कश्मीर घाटी में उदारवादी अलगाववादी चेहरा मीरवाइज उमर फारूक ने बृहस्पतिवार शाम ‘एक्स’ पर अपने सत्यापित अकाउंट के प्रोफाइल से अपना पदनाम चेयरमैन ऑल पार्टीज हुर्रियत कॉन्फ्रेंस हटा दिया। मीरवाइज के ‘एक्स’ हैंडल में संपादित ‘बायो’ में केवल उसके नाम और मूल स्थान का विवरण है। मीरवाइज के दो लाख से ज्यादा फॉलोअर हैं। इस घटनाक्रम पर मीरवाइज की टिप्पणी नहीं मिल पाई। मीरवाइज के संगठन ‘अवामी एक्शन कमेटी’ को केंद्र सरकार ने कड़े आतंकवाद विरोधी कानून के तहत प्रतिबंधित कर दिया है।

वर्ष 1993 में गठित ‘ऑल पार्टी हुर्रियत कॉन्फ्रेंस’ (एपीएचसी) जम्मू-कश्मीर में अलगाववादी संगठनों का एक समूह है, जो बड़े पैमाने पर बंद और राजनीतिक गोलबंदी के समन्वय के लिए पर्याप्त प्रभाव रखता था।

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हालांकि, पिछले एक दशक में कई कारणों से संगठन का दबदबा कम हो गया, जिसमें अंदरूनी कलह और बाद में केंद्र की कार्रवाई शामिल है, जिसने अलगाववादी समूहों के प्रति अपने रवैये को काफी सख्त कर दिया।

2019 में आर्टिकल 370 खत्म होने के बाद, केंद्र ने APHC के ज़्यादातर सदस्य संगठनों पर बैन लगा दिया, और तब से कई सीनियर नेताओं को कड़े कानूनों के तहत गिरफ्तार किया गया/मामला दर्ज किया गया या वे पूरी तरह से सार्वजनिक गतिविधियों से हट गए हैं। 

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हुर्रियत ने सालों से कोई भी राजनीतिक कार्यक्रम नहीं किया है और न ही कोई संयुक्त आह्वान जारी किया है, जिससे कभी प्रभावशाली रहा यह संगठन ज़मीन पर काफी हद तक निष्क्रिय हो गया है। मीरवाइज़ 1993 में 20 साल की उम्र में हुर्रियत के चेयरमैन बने थे। यह उनके पिता मीरवाइज़ मौलवी फारूक की हत्या के सिर्फ तीन साल बाद हुआ था। हाल के सालों में मीरवाइज़ ने सार्वजनिक तौर पर सीमित मौजूदगी बनाए रखी है, और ज़्यादातर धार्मिक उपदेशों और नागरिक स्वतंत्रता और मानवीय मुद्दों पर बयान देने पर ध्यान दिया है। चूंकि यह बदलाव बुधवार शाम को ही हुआ, इसलिए अब तक कोई राजनीतिक या आधिकारिक प्रतिक्रिया सामने नहीं आई है, और इस घटना से कोई नतीजा निकालना अभी जल्दबाजी होगी।

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देश की सुरक्षा पर खतरा? ATS के शिकंजे में सॉफ्टवेयर इंजीनियर, आतंकी संगठनों से संबंध की परतें उधड़ेंगी

 महाराष्ट्र एंटी-टेररिज्म स्क्वाड (ATS) ने गिरफ्तार सॉफ्टवेयर इंजीनियर जुबैर हंगरगेकर की फिर से कस्टडी ले ली है। ATS ने कोर्ट को बताया कि वह उसके टेलीग्राम अकाउंट में मिले अफगानिस्तान और हांगकांग के IP एड्रेस की जांच कर रही है। बुधवार को, ATS ने दूसरी बार हंगरगेकर की कस्टडी ली, जिसे अक्टूबर में अल कायदा और 'अल कायदा इन द इंडियन सबकॉन्टिनेंट' जैसे बैन संगठनों से कथित संबंधों और कट्टरपंथी गतिविधियों में शामिल होने के शक में गिरफ्तार किया गया था। यहां गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (UAPA) की स्पेशल कोर्ट ने उसे 3 जनवरी तक ATS की कस्टडी में भेज दिया है।

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एक अधिकारी ने बताया, ‘‘एटीएस ने बुधवार को हंगरगेकर को फिर से हिरासत में लिया। अदालत ने उसे तीन जनवरी तक एटीएस की हिरासत में भेज दिया है।’’ यूएपीए के तहत पुलिस आतंकवाद के मामलों में गिरफ्तार व्यक्ति को अदालत की अनुमति से अधिकतम 30 दिन तक पूछताछ के लिए हिरासत में रख सकती है। जुबैर (37) को प्रतिबंधित आतंकी संगठनों से कथित संबंधों के आरोप में 27 अक्टूबर को गिरफ्तार किया गया था। अधिकारी ने बताया, ‘‘गिरफ्तारी के बाद अदालत ने जुबैर को 18 दिनों के लिए एटीएस की हिरासत में भेज दिया था।

इसके बाद, पिछले महीने जांच एजेंसी ने उसे न्यायिक हिरासत में भेजने का अनुरोध किया, जिसे अदालत ने स्वीकार कर लिया, लेकिन पुलिस हिरासत का अधिकार भी सुरक्षित था। इसलिए, एटीएस की हिरासत की शेष अवधि बाकी थी।’’ उन्होंने बताया कि अदालत ने जुबैर को एक बार फिर एटीएस की हिरासत में भेज दिया है।

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एटीएस ने इससे पहले अदालत को सूचित किया था कि जांच के दौरान, उसे जुबैर के पुराने फोन में एक पाकिस्तानी फोन नंबर मिला है। इससे पहले, एटीएस ने पुणे की एक अदालत को सूचित किया था कि जुबैर कथित तौर पर शहर के कोंढवा इलाके में ‘‘आक्रामक’’ तरीके से धार्मिक प्रवचन दिया करता था।

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