पाकिस्तान की राजनीति में इस समय बड़ी हलचल देखने को मिल रही है। हम आपको बता दें कि जमीयत उलेमा ए इस्लाम एफ के प्रमुख मौलाना फजलुर रहमान ने अफगानिस्तान में पाकिस्तान सेना की सीमा पार कार्रवाइयों की तुलना भारत के ऑपरेशन सिंदूर से करते हुए इस्लामाबाद की दोहरी सोच को बेपर्दा कर दिया है। पाकिस्तान के वरिष्ठ नेता की ओर से अपने देश की सैन्य नीति पर सवाल उठाये जाने से शहबाज शरीफ सरकार असहज हो गयी है और उससे सीधा जवाब देते नहीं बन रहा है।
हम आपको बता दें कि फजलुर रहमान ने पाकिस्तानी सेना प्रमुख असीम मुनीर के नेतृत्व में अफगानिस्तान के भीतर किए गए हमलों पर सवाल उठाते हुए कहा है कि इन कार्रवाइयों में आम अफगान नागरिक मारे गए हैं। उन्होंने कहा कि अगर पाकिस्तान यह कहता है कि उसने अफगानिस्तान में अपने दुश्मनों को निशाना बनाया और यह उसका अधिकार है तो भारत भी यही कह सकता है कि उसने बहावलपुर और मुरिदके में उन संगठनों के मुख्यालयों पर हमला किया जो कश्मीर में आतंक फैलाते हैं। फिर आपत्ति किस आधार पर की जाए?
फजलुर रहमान ने साफ कहा कि आज वही आरोप अफगानिस्तान पाकिस्तान पर लगा रहा है जो पाकिस्तान भारत पर लगाता रहा है। ऐसे में एक साथ दो विपरीत रुख को सही ठहराना न नैतिक रूप से संभव है न राजनीतिक रूप से। हम आपको बता दें कि फजलुर रहमान की टिप्पणी भारत की उस सैन्य कार्रवाई के संदर्भ में है जिसे दुनिया ऑपरेशन सिंदूर के नाम से जानती है। सात मई की सुबह भारत ने पाकिस्तान और पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में नौ आतंकी ठिकानों पर मिसाइल हमले किए थे। इनमें बहावलपुर में जैश ए मोहम्मद का गढ़ और मुरिदके में लश्कर ए तैयबा का मुख्य अड्डा शामिल था। यह कार्रवाई 22 अप्रैल को कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले का जवाब थी जिसमें छब्बीस निर्दोष नागरिक मारे गए थे।
हम आपको यह भी बता दें कि फजलुर रहमान के बयान के बाद पाकिस्तान सरकार में बेचैनी साफ दिखी। रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ ने उनकी आलोचना को खारिज करते हुए कहा कि अफगानिस्तान में की गई कार्रवाई आतंकियों के खिलाफ थी न कि किसी देश के खिलाफ। लेकिन यह सफाई उस मूल सवाल का जवाब नहीं देती जो फजलुर रहमान ने उठाया है। हम आपको बता दें कि फजलुर रहमान की पार्टी के नेशनल असेंबली में दस सदस्य हैं।
इधर पाकिस्तान और अफगानिस्तान के रिश्ते लगातार बिगड़ते जा रहे हैं। तालिबान की काबुल में वापसी के बाद से सीमा पर तनाव बढ़ा है। पाकिस्तान का आरोप है कि अफगान धरती से आतंकियों को संरक्षण मिलता है जबकि अफगान पक्ष इन आरोपों को सिरे से खारिज करता है। हालिया सीमा झड़पों में अफगान नागरिकों की मौत ने इस टकराव को और भड़काया है। भारत ने भी पाकिस्तान की अफगानिस्तान के खिलाफ सैन्य कार्रवाइयों की आलोचना की है। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने स्पष्ट कहा कि निर्दोष अफगान नागरिकों पर हमले निंदनीय हैं।
देखा जाये तो फजलुर रहमान का बयान सिर्फ एक राजनीतिक हमला नहीं है बल्कि पाकिस्तान की सामरिक सोच पर एक तीखा आरोप पत्र है। दशकों से पाकिस्तान सेना यह मानकर चलती रही है कि राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर हर कदम जायज है और उस पर सवाल उठाना देशद्रोह के बराबर है। लेकिन अब यही सवाल भीतर से उठ रहा है और वह भी धार्मिक राजनीति के पुराने खिलाड़ी द्वारा। सामरिक दृष्टि से इसका पहला असर पाकिस्तान की नैतिक स्थिति पर पड़ता है। जब खुद उसके नेता यह स्वीकार करते दिखें कि सीमा पार हमले एक वैध विकल्प हो सकते हैं तो भारत की कार्रवाइयों को अवैध बताने का उसका नैरेटिव कमजोर पड़ जाता है।
साथ ही फजलुर रहमान का बयान भारत के उस तर्क को बल देता है कि आतंक और राजनीति को अलग नहीं किया जा सकता। जब आतंक के खिलाफ कार्रवाई को पाकिस्तान खुद सही ठहराता है तो फिर वही तर्क भारत के लिए गलत कैसे हो सकता है। बहरहाल, आइये देखते हैं फजलुर रहमान की किस बात से पाकिस्तान सरकार को मिर्ची लगी है।
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एच-1बी वीजा कार्यक्रम में एक महत्वपूर्ण बदलाव के तहत, ट्रम्प प्रशासन वीजा लाभार्थियों के चयन के लिए इस्तेमाल की जाने वाली लॉटरी प्रणाली को एक ऐसी प्रक्रिया से बदल रहा है जो उच्च कौशल और उच्च वेतन वाले व्यक्तियों को वीजा आवंटन में प्राथमिकता देगी। यह नया दिशानिर्देश ट्रंप प्रशासन द्वारा कानूनी और अवैध दोनों तरह के आव्रजन, साथ ही एच-1बी वीजा पर की जा रही कड़ी कार्रवाई के बीच आया है। एच-1बी वीजा का इस्तेमाल अमेरिका में कंपनियां विदेशी प्रतिभाओं को नियुक्त करने के लिए करती हैं। भारतीय पेशेवर अमेरिका में एच-1बी वीजा धारकों के सबसे बड़े समूह में शामिल हैं।
अब तक इस वीजा के लिए लॉटरी सिस्टम का इस्तेमाल किया जाता था, जिसमें किस्मत के आधार पर आवेदकों का चुनाव होता था। लेकिन अब ट्रंप प्रशासन ने इसे खत्म कर 'मेरिट' यानी योग्यता और ऊंचे वेतन को आधार बनाने का फैसला किया है। सरकार का तर्क है कि पुराने सिस्टम का फायदा उठाकर कंपनियां कम वेतन पर विदेशी कर्मचारियों को बुलाती थीं, जिससे अमेरिकी कामगारों के हितों को नुकसान पहुंचता था। अब नए नियमों के तहत केवल उन्हीं लोगों को प्राथमिकता मिलेगी जिनके पास विशेष हुनर होगा और जिन्हें कंपनियां अधिक वेतन देने को तैयार होंगी।
जारी बयान में अमेरिकी गृह सुरक्षा विभाग ने कहा कि एच1-बी वीजा की चयन प्रक्रिया में बदलाव किया जा रहा है। अब ज्यादा कुशल और ज्यादा वेतन पाने वाले लोगों को पहले मौका दिया जाएगा। बयान में कहा गया है कि इसका मकसद अमेरिकी कामगारों के वेतन, काम करने की स्थिति और नौकरी के अवसरों की रक्षा करना है। नया नियम 27 फरवरी 2026 से लागू होगा और वित्त वर्ष 2027 की एच-1बी वीज़ा पंजीकरण प्रक्रिया में इस नियम का इस्तेमाल किया जाएगा। बयान में कहा गया है कि इसके तहत वीजा पाने वालों का चयन अब लॉटरी से नहीं होगा, बल्कि अधिक कौशल वाले लोगों को ज्यादा प्राथमिकता दी जाएगी।
एजेंसी ने कहा कि एच-1बी वीजा के लिए लॉटरी प्रणाली का काफी दुरुपयोग हो रहा था और कुछ कंपनियां इसका इस्तेमाल कम वेतन पर विदेशी कर्मचारियों को रखने के लिए कर रही थीं। अमेरिकी नागरिकता एवं आव्रजन सेवा (यूएससीआईएस) के प्रवक्ता मैथ्यू ट्रैगेसर ने कहा कि अमेरिकी नियोक्ताओं मौजूदा लॉटरी प्रणाली का दुरुपयोग कर रहे हैं। वे अमेरिकी कामगारों की तुलना में कम वेतन पर विदेशी कर्मचारियों को लाना चाहते थे। उन्होंने कहा कि नयी चयन प्रक्रिया एच-1बी कार्यक्रम को संसद की मंशा के अनुसार बेहतर बनाएगी और अमेरिकी कंपनियों को अधिक वेतन पाने वाले, अधिक कुशल विदेशी कर्मचारियों को चुनने के लिए प्रोत्साहित करेगी। इससे अमेरिका की प्रतिस्पर्धात्मक क्षमता मजबूत होगी।
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