झोपड़पट्टी में बीता बचपन, पड़ोसी ने टीवी देखने से रोका:ठाना एक दिन उसी टीवी पर आऊंगा, 'तारे जमीन पर' से विपिन शर्मा स्टार बने
मैं दिल्ली के एक स्लम इलाके में पला-बढ़ा, जहां न बिजली थी, न टीवी। हम स्ट्रीट लाइट के नीचे बैठकर पढ़ाई करते थे। आसपास के कुछ घरों की हालत हमसे थोड़ी बेहतर थी। वहां बिजली और टीवी भी थी। मैं अक्सर उनके घर जाकर टीवी पर फिल्में देखता था, लेकिन कई बार मुझे आने नहीं देते थे। एक बार ऐसी फिल्म आई, जिसे मैं देखना चाहता था, पर मुझे रोका गया। गुस्से में मैंने ठान लिया कि एक दिन मैं उनके टीवी पर जरूर आऊंगा’ यह कहना है बॉलीवुड के प्रतिभाशाली अभिनेता विपिन शर्मा का, जिन्होंने अपने संजीदा अभिनय से बॉलीवुड में अपनी अलग पहचान बनाई है। 'तारे जमीन पर' और 'गैंग्स ऑफ वासेपुर' जैसी कई फिल्मों में विविध भूमिकाएं निभाकर विपिन शर्मा ने साबित किया है कि स्टारडम पावरफुल परफॉर्मेंस के बल पर भी पाया जा सकता है। आज की सक्सेस स्टोरी में हम जानेंगे विपिन शर्मा के जीवन और करियर से जुड़ी कुछ खास और रोचक बातें, उन्हीं की जुबानी.. दिल्ली के स्लम इलाके में बीता बचपन मैं दिल्ली के एक स्लम इलाके में पला-बढ़ा, जहां बिजली नहीं थी। आसपास के कुछ घरों की हालत हमसे बेहतर थी। वहां बिजली और टीवी होती थी। हमारी झुग्गी की कई महिलाएं वहीं काम करने जातीं, तो हम भी चुपके से टीवी देखने का जुगाड़ कर लेते। बचपन में उन घरों के टीवी पर प्रोग्राम देखते हुए ही मैंने मन में ठान लिया था कि एक दिन मुझे भी इसी टीवी पर आना है। मेरे अभावों से भरे बचपन की सबसे अच्छी बात ये रही कि मेरा पूरा ध्यान हमेशा अभिनय पर ही लगा रहा। मैं किसी दूसरी राह पर भटका ही नहीं। बहुत कम उम्र से ही मुझे सिनेमा और टीवी की दुनिया बेहद आकर्षित करती थी और मैंने तय कर लिया था कि कभी न कभी खुद भी स्क्रीन पर नजर आऊंगा। स्कूल के दिनों में मैं बड़े-बड़े एक्टर्स की नकल किया करता था। स्कूल में मंच पर काम करने के बहुत मौके नहीं मिले, लेकिन भीतर का जुनून धीरे-धीरे करियर का लक्ष्य बनता गया। संजीव कुमार से मिली थिएटर जॉइन करने की प्रेरणा वहीं मुझे पहली बार पता चला कि एनएसडी (नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा) भी है। मैं एनएसडी के एक स्टूडेंट से मिला, उसने मुझे अपनी परफॉर्मेंस देखने के लिए बुलाया। जब मैं एनएसडी के अंदर गया और उसकी परफॉर्मेंस देखी, तो मैं पूरी तरह मंत्रमुग्ध हो गया। मुझे लगा कि मुझे यहीं आना है, क्योंकि यह जगह एक्टिंग सिखाती है और ये एक बहुत बड़ा और प्रसिद्ध संस्थान है। उसके बाद मैंने मंडी हाउस के नाटकों से जुड़कर थिएटर की दुनिया में कदम रखा। नाटक देखता, सीखता और धीरे-धीरे खुद मंच पर अभिनय करने लगा। एनएसडी की ट्रेनिंग ने मेरी एक्टिंग यात्रा की बुनियाद रखी थिएटर से जुड़ने के बाद मैंने ठान लिया कि अभिनय को पेशेवर तरीके से सीखना है। इसलिए मैंने राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय (NSD) की प्रवेश परीक्षा दी। कमाल की बात यह रही कि मेरा सिलेक्शन पहली ही कोशिश में हो गया, जबकि आमतौर पर लोग सालों तक इंतजार करते हैं। मैं खुद को बहुत खुशकिस्मत मानता हूं। इरफान खान, तिग्मांशु धूलिया, पीयूष मिश्रा, संजय मिश्रा, विनीत कुमार और सीमा विश्वास मेरे समकालीन थे। एनएसडी की ट्रेनिंग ने मेरी एक्टिंग यात्रा की मजबूत बुनियाद रखी। वहां का माहौल, वहां का रियाज, सब दिमाग में बस गया। एनएसडी से निकलने के बाद शुरू‑शुरू में मुझे एक्टिंग के कुछ काम भी मिलने लगे। मेरे एक्टिंग करियर की शुरुआती पहचान दूरदर्शन के धारावाहिक ‘भारत एक खोज’ (1989) से हुई और फिर 1996 में फिल्म ‘कृष्णा’ के जरिए मैंने फीचर फिल्म में एंट्री की। कैमरे के पीछे की तरफ झुकाव हुआ और एडिटर बन गया इसी दौरान मेरा झुकाव धीरे‑धीरे फिल्ममेकिंग की तरफ ज्यादा होने लगा। मैं कैमरे के पीछे की दुनिया को समझने में इतना लग गया कि एक्टिंग पर उतना फोकस ही नहीं कर पाया। धीरे‑धीरे करके मैंने एक्टिंग लगभग छोड़ ही दी और काफी लंबा गैप आ गया। मुझे ऐसा कुछ करना था जो फिल्म से जुड़ा रहे, तो मैंने एडिटिंग शुरू की और फिर मैं एडिटर बन गया। एडिटिंग फिल्म बनाने का एक बहुत ही खास और दिलचस्प हिस्सा है। लोग शायद समझ नहीं पाते कि एडिटिंग में कितना फर्क पड़ता है। आप सोचिए, एक सेकेंड में 23 फ्रेम होते हैं। अगर आप सिर्फ एक फ्रेम निकाल दें तो भी फिल्म में बड़ा बदलाव आ जाता है। आंख से ये फ्रेम दिखते नहीं, लेकिन एडिटर को पता होता है कि कहां कट करना है और कैसे फिल्म को बेहतर बनाना है। मेरे लिए एडिटिंग एक तरह से जादू थी, जो फिल्म की कहानी और भावना को और खास बना देती है। एक्टिंग से लंबा ब्रेक लिया तो दोस्तों ने कहा कि अब तुम एक्टर नहीं रहे जब मैंने एक्टिंग छोड़ दी थी, तो सच में काफी लंबा गैप हो गया। एक्टिंग पूरी तरह बंद कर चुका था। फिर जब दोबारा एक्टिंग के बारे में सोचा, तो मेरे दोस्तों ने कहा, “अब तुम एक्टर नहीं रहे।” यह बात विनीत कुमार ने कही थी, जिसे हम काला नाग से भी बुलाते हैं। उन्हें आपने वेब सीरीज ‘महारानी’ में गौरी शंकर पांडेय उर्फ काला नाग के रूप में देखा होगा। खुद लगने लगा कि अब मैं एक्टर नहीं रहा मैंने माना कि वह सही कह रहे हैं। जब आप कुछ सीखते हैं, लेकिन उसे इस्तेमाल नहीं करते, तो वह भूलने लगता है। जैसे पेंटिंग सीखी हो, लेकिन ब्रश न चलाओ तो स्ट्रोक्स भूल जाओगे। इसलिए रियाज बहुत जरूरी है। बस उसी सोच से मैं टोरंटो चला गया और वहां दो साल में लगभग 30 हफ्ते की एक्टिंग क्लासेज ली। खुद को दोबारा ट्रेन किया, क्योंकि मुझे लग रहा था कि अब मैं एक्टर नहीं रहा हूं। एक्टर्स के लिए रियाज अलग होता है। मैं हमेशा कहता हूं कि शीशे के सामने एक्टिंग मत करो, वो बुरा तरीका है। असली रियाज है, किताबें पढ़ना, साहित्य, म्यूजिक सुनना, दुनिया की खबरें देखना। काम न हो तो यही करो। ‘तारे जमीन पर’ से नई पारी की शुरुआत हुई ट्रेनिंग के बाद जब मेरा कॉन्फिडेंस वापस आया, तो मुझे आमिर खान स्टारर फिल्म ‘तारे जमीन पर’ के लिए ऑडिशन देने का मौका मिला। ऑडिशन खुद आमिर ने लिया और मुझे नंदकिशोर अवस्थी के रोल के लिए चुन लिया। मेरे लिए यह बड़ी बात थी, क्योंकि करीब 10-12 साल मैं एक्टिंग से लगभग दूर रह चुका था। मेरे लिए ‘तारे जमीन पर’ सिर्फ एक फिल्म नहीं, एक नई पारी थी। यहीं से मुझे बड़े स्तर पर पहचान मिली और एक तरह से मेरा करियर दोबारा शुरू हुआ। मुझे आज भी लगता है कि मैं बेहद फॉर्च्युनेट रहा कि मुझे इतनी बड़ी अपॉर्च्युनिटी मिली। ‘तारे जमीन पर’ के बाद असली स्ट्रगल शुरू हुआ लोग सोचते हैं कि स्ट्रगल सफलता से पहले होता है, लेकिन मेरा असली संघर्ष ‘तारे जमीन पर’ के बाद शुरू हुआ। फिल्म की तारीफ बहुत हुई, लेकिन मुझे पिता के रोल ऑफर हो रहे थे। इंडस्ट्री में एक बड़ा इश्यू टाइपकास्टिंग का है। लोगों को अक्सर लगता है कि आप बस एक ही तरह का काम कर सकते हैं। यह सिर्फ एक्टर्स के साथ नहीं, डायरेक्टर्स के साथ भी होता है। अगर किसी डायरेक्टर की कॉमेडी फिल्म चल गई, तो इंडस्ट्री वाले मान लेते हैं कि यह बस कॉमेडी ही बना सकता है, इसको थ्रिलर मत दो। सास‑बहू सीरियल्स में पिता के रोल के ऑफर ठुकरा दिए एक्टर के केस में भी वही होता है। अगर आपने एक जोन में अच्छा काम कर दिया, तो बार‑बार वही ऑफर आते हैं। मेरे साथ भी यही हुआ। ‘तारे जमीन पर’ के बाद टेलीविजन से बहुत ऑफर आए। खासकर सास‑बहू सीरियल्स में पिता के रोल के लिए। पैसे अच्छे थे, काम लगातार था, लेकिन मैंने ज्यादातर ऐसे ऑफर ठुकरा दिए। मना करना आसान नहीं था, क्योंकि उस वक्त पैसों की बहुत जरूरत थी, लेकिन मुझे पता था कि अगर मैं हां कह दूं, तो मैं उसी टाइपकास्ट में फंस जाऊंगा। ऐसा काम जो दिल से पसंद न हो, वो बोझ बन जाता है, बोरिंग लगने लगता है। इसलिए मैंने तय किया कि एक्साइटिंग और अलग-अलग काम ही करूंगा, चाहे कम ही क्यों न हो। स्ट्रगल इंसान को इंस्पायर भी करता है मेरे लिए स्ट्रगल का मतलब वह हालत जो आपको अलर्ट पर रखती है। थोड़ा सोचना पड़ता है कि बात कहां अटकी है, क्यों नहीं हो रहा, क्या बदलना है। स्ट्रगल इंसान को इंस्पायर भी करती है। सबसे बड़ा चैलेंज यह होता है कि आप अपने समय का सही इस्तेमाल कैसे करें। डिप्रेशन में न जाएं, काउच पोटैटो न बनें, आलस न करें। मुझे कभी गहरा डिप्रेशन नहीं हुआ, लेकिन उतार-चढ़ाव बहुत देखे हैं। महत्वपूर्ण फिल्में, वेब सीरीज और डायरेक्टर्स के साथ सफर मेरे करियर में कुछ प्रोजेक्ट्स टर्निंग पॉइंट की तरह रहे हैं। मैंने अनुराग कश्यप के साथ ‘गैंग्स ऑफ वासेपुर’ की, जो मेरे लिए एक बहुत अहम मुकाम था। सुधीर मिश्रा के साथ ‘ये सारी जिंदगी’ और ‘इनकार’ जैसी फिल्मों में काम किया, जहां किरदारों को गहराई से निभाने का मौका मिला। दिबाकर बनर्जी के साथ ‘ओए लकी! लकी ओए!’ की, जो अपने आप में बहुत मजेदार अनुभव था। ‘मंकी मैन’ मेरे करियर की बेहद दिलचस्प फिल्म थी, जिसमें मुझे हिजड़ा समुदाय के लीडर जैसा अनोखा किरदार निभाने का मौका मिला। हाल के दिनों में मैं वेब सीरीज की दुनिया में भी कूद पड़ा हूं। ‘पाताललोक’, ‘द फैमिली मैन’ और ‘महारानी’ में एकदम अलग तरह के रोल मिले। ‘महारानी 4’ में सुभाष कपूर के साथ काम करने का अनुभव बिल्कुल अलग रहा। वह हमेशा आपको आपकी तयशुदा ट्रिक्स से बाहर निकालने की कोशिश करते हैं, चाहते हैं कि आप जो अब तक करते आए हैं उससे हटकर कुछ नया करें। मेरे लिए यह बहुत खूबसूरत और चैलेंजिंग था।आजकल प्लेटफॉर्म बदल गए हैं, दर्शकों का स्वाद बदल गया है और यह बदलाव मेरे जैसे एक्टर्स के लिए भी नई संभावनाएं लेकर आया है। ‘धड़क 2’ का अनुभव मेरे लिए बहुत खास था ‘धड़क 2’ का अनुभव मेरे लिए बेहद खास रहा। फिल्म देखने के बाद लोग मिलते हैं तो अक्सर शब्द नहीं ढूंढ पाते। कहते हैं, “सर, वो सीन…” और इशारों में बताते हैं कि दिल को छू गया। मेरे लिए यह सबसे हंबलिंग एक्सपीरियंस था, क्योंकि वहां लोग सिर्फ एक्टिंग की तारीफ नहीं करते, वे कहते हैं, “वो सीन देखकर कुछ महसूस हो गया।” यह सीधे जीवन से, उनकी अपनी पर्सनल फीलिंग्स से जुड़ता है। मेरे लिए यही सबसे इंस्पायरिंग चीज है। इरफान खान मेरे सबसे बड़े इंस्पिरेशन रहे हैं इरफान खान मेरी जिंदगी के सबसे बड़े इंस्पिरेशन रहे हैं। जब मैं एक्टिंग नहीं भी कर रहा था, तब भी मैं उनका काम देखता था। फिर जब मैंने दोबारा एक्टिंग शुरू की, तो मुझे और अच्छे से समझ में आने लगा कि इरफान असल में कर क्या रहे हैं। पहले मैं उन्हें बस एक एक्टर की तरह देखता था, लेकिन बाद में महसूस हुआ कि वे मेरे लिए सिर्फ रोल मॉडल नहीं, एक तरह से गाइड हैं। उनसे मैंने यह सीखा कि कैसे कम से कम चीजों में ज्यादा कहना है। ‘पान सिंह तोमर’ में इरफान खान के साथ काम करना मेरे लिए भावनात्मक और रूहानी अनुभव जैसा था। कोविड के बाद मेरी लाइफ दो हिस्सों में बंट गई कोविड ने मेरी जिंदगी पूरी तरह बदल दी। मेरी लाइफ दो हिस्सों में बंट गई। कोविड से पहले और कोविड के बाद, और दोनों बिल्कुल अलग हैं। कई सालों से मैं मेडिटेशन को समझने की कोशिश कर रहा था, लेकिन असली समझ पैंडेमिक के दौरान आई। उस समय मैंने लगातार मेडिटेशन किया, काफी पढ़ाई की और न्यूरोप्लास्टिसिटी, हेल्थ इश्यूज, डाइट वगैरह पर नई रिसर्च पढ़ने लगा। इसी दौर ने मुझे मेरी फिल्म का आइडिया दिया। मैंने अद्वैतवाद पर एक स्क्रिप्ट लिखी है। अद्वैत की फिलॉसफी कि सब एक है, नो सेपरेशन। उसी पर यह फिल्म आधारित है। अब मेरी इच्छा है अद्वैतवाद वाली फिल्म को खुद डायरेक्ट और प्रोड्यूस भी करूं। एक्टिंग तो इसमें करूंगा ही। इससे पहले भी मैं गोवा में एक शॉर्ट फिल्म बना चुका था, जिसमें कोई डायलॉग नहीं था। तीन शॉर्ट स्टोरीज को मिलाकर वह फिल्म बनाई, जो कई फेस्टिवल्स में गई। बीच में एक और फिल्म शुरू की थी, जो पूरी नहीं हो सकी। फैमिली, समाज की सोच और प्रोफेशन के लिए संघर्ष शुरू में फैमिली का बिल्कुल सपोर्ट नहीं था। उस समय अगर कोई बच्चा नाटक में काम करने जाता था, तो मां-बाप खुश नहीं होते थे। अब तो शायद रील्स और सोशल मीडिया के दौर में थोड़ा ग्लैमर है, लेकिन पहले एक्टिंग को काम ही नहीं माना जाता था। आज भी कुछ लोग पूछते हैं, “एक्टिंग क्या काम है? इसके अलावा और क्या करोगे?” यह सोच बदलने में समय लगा और अभी भी पूरी तरह नहीं बदली है। मेरा संघर्ष थोड़ा अलग तरह का रहा। मुझे अपने परिवार को भी यह समझाना था कि यह मेरा प्रोफेशन है, कोई शौक नहीं। और साथ ही इंडस्ट्री को यह यकीन दिलाना था कि मैं सिर्फ एक तरह का नहीं, बहुत तरह के किरदार निभा सकता हूं। सेट पर सच्चाई, ईगो और नया करने का डर जब मैं एक्टिंग के बारे में सोचता हूं, तो मुझे सबसे बड़ा मोटिवेशन यह लगता है कि सेट पर एक सीन करते समय अगर अचानक महसूस हो कि मैं वही कर रहा हूं जो हमेशा से करता आया हूं और अब उसमें मजा नहीं आ रहा, तो उस बात को मानना बहुत मुश्किल होता है। सबसे मुश्किल चीज यह होती है कि आप उसी से थोड़ा हटकर कुछ नया करने की कोशिश करें। सेट पर इतने लोग होते हैं, अपना ईगो होता है, सब देख रहे होते हैं। ऐसे में अगर डायरेक्टर आकर बोल दे-“नहीं, बात नहीं बनी, अच्छा नहीं लग रहा।” तो वो पल बहुत भारी लगता है, लेकिन मुझे लगता है कि वही पल आपको सबसे ज्यादा आगे बढ़ा सकते हैं, अगर आप अपना ईगो साइड में रखकर बात मान लें। हर एक्टर की अपनी कुछ ट्रिक्स होती हैं, लेकिन जब मौका मिले कि आप उन तयशुदा ट्रिक्स से बाहर निकलकर कुछ अलग करें, तो मेरे हिसाब से वही सबसे जरूरी और सबसे चैलेंजिंग चीज है। सफलता एक बहुत ताकतवर चीज है, संभालकर रखना पड़ता है मेरे लिए सफलता का मतलब सिर्फ पैसा या शोहरत नहीं है। अगर सफलता मेहनत से मिली हो, तो वह कंट्रोल में रहती है, आप बहकते नहीं हैं। मेरे लिए असली सफलता तारीफ है, लेकिन तारीफ सुनते ही मेरे दिमाग में पहला सवाल आता है- अगला क्या?” सफलता आपको चैलेंज करनी चाहिए, ताकि अगला काम इससे बेहतर हो। थोड़ा डर भी लगे कि अब और तैयारी करनी पड़ेगी, वरना ऊपर जाने के बजाय नीचे चले जाओगे। सफलता एक बहुत ताकतवर चीज है, इसे संभालकर रखना पड़ता है। मेरा मानना है कि अगर आप अपने काम से सच्चा प्यार करते हैं, तो बस करते रहिए। कल क्या होगा, होगा या नहीं। इन बातों की चिंता मत कीजिए। लगे रहिए, क्योंकि अगर प्यार है, तो जल्दी या देर से, फल जरूर मिलेगा। कीप डूइंग इट… ‘लगे रहो मुन्नाभाई’ की तरह। यह बात मजाक में कह रहा हूं, लेकिन बात वही है कि बस करते रहो। —-------------------------------------------------------- पिछले हफ्ते की सक्सेस स्टोरी पढ़िए... एक्टिंग की वजह से घर से निकाले गए:कभी अकाउंट में सिर्फ 18 रुपए थे, 'गली बॉय', ‘मिर्जापुर' के बाद विजय वर्मा की चमकी किस्मत विजय वर्मा ने भारतीय सिनेमा में अपने टैलेंट और दमदार एक्टिंग के दम पर मजबूत पहचान बनाई है। उनकी सफलता मेहनत, समर्पण और अलग-अलग प्रकार के किरदार निभाने की क्षमता का नतीजा है। उन्होंने अपने करियर में कई चुनौतीपूर्ण और विविध भूमिकाएं निभाईं, जिनमें उनकी गहराई और भावपूर्ण अभिव्यक्ति साफ झलकती है।पूरी खबर पढ़ें....
भारत घर में 17 टी-20 सीरीज से नहीं हारा:साउथ अफ्रीका के पास बराबरी का मौका, IND vs SA पांचवां मुकाबला आज
भारत और साउथ अफ्रीका के बीच पांच मैचों की टी-20 सीरीज का आखिरी मुकाबला आज अहमदाबाद में खेला जाएगा। इसी मैच के साथ साउथ अफ्रीका का 35 दिन का भारत दौरा भी समाप्त हो जाएगा। इस दौरे में प्रोटियाज टीम ने टेस्ट सीरीज 2-0 से अपने नाम की, जबकि वनडे सीरीज में उसे भारत के खिलाफ 2-1 से हार झेलनी पड़ी। टी-20 सीरीज में फिलहाल भारत 2-1 से आगे है। हालांकि अहमदाबाद में साउथ अफ्रीका के पास सीरीज बराबर करने का सुनहरा मौका होगा। भारतीय टीम लखनऊ में ही सीरीज जीत सकती थी, लेकिन चौथा टी-20 मुकाबला घने कोहरे के कारण बिना एक भी गेंद फेंके रद्द हो गया। अब सीरीज का फैसला अहमदाबाद के मैच में होगा। भारत घर में लगातार 17 टी-20 सीरीज से नहीं हारा है। टीम को आखिरी हार 2019 में ऑस्ट्रेलिया से मिली थी। इसके बाद 17 सीरीज खेली गई, इसमें 15 जीती और 2 ड्रॉ रही। अहमदाबाद में कोहरे की संभावना नहीं रिपोर्ट के अनुसार शुक्रवार को मैच के दौरान अहमदाबाद में कोहरे की संभावना नहीं है। आसमान बिल्कुल साफ होने का अनुमान है। तापमान 16 से 30 डिग्री सेल्सियस के बीच रहेगा। यानी मैच पूरे 40 ओवर का हो सकता है। यह भारत का वो हिस्से हैं जहां नवंबर, दिसंबर और जनवरी में इंटरनेशनल क्रिकेट होना चाहिए। यहां ज्यादा ठंड नहीं होती, रोशनी ज्यादा देर तक रहती है, और कोहरा और स्मॉग की कोई समस्या नहीं हैं। साउथ अफ्रीका के खिलाफ भारत आगे भारत और साउथ अफ्रीका के बीच अब तक 34 टी-20 इंटरनेशनल मुकाबले हुए हैं। इस दौरान टीम इंडिया ने 20 मैच जीते हैं और साउथ अफ्रीका ने 13 मैचों में जीत दर्ज की है। वहीं 1 मैच का रिजल्ट नहीं निकल सका। टीम अपडेट तिलक वर्मा भारत के टॉस स्कोरर इस सीरीज में भारत की ओर से तिलक वर्मा सबसे सफल बल्लेबाज रहे हैं। उन्होंने 3 मैचों में 114 रन बनाए हैं और स्ट्राइक रेट 114.00 का रहा है। इस दौरान तिलक ने एक अर्धशतक भी लगाया है। गेंदबाजी में वरुण चक्रवर्ती ने शानदार प्रदर्शन किया है। उन्होंने 3 मैचों में 6 विकेट झटके हैं। मार्करम ने सबसे ज्यादा रन बनाए अब तक हुए 23 टी-20 में साउथ अफ्रीका की ओर से कप्तान ऐडन मार्करम टॉप रन स्कोरर हैं। उनके नाम 104 रन हैं। इस दौरान उन्होंने एक अर्धशतक भी लगाया है। गेंदबाजी में लुंगी एनगिडी ने टीम के लिए अहम भूमिका निभाई है। उन्होंने 3 मैचों में 56 विकेट लिए हैं। पहले बैटिंग करने वाली टीम ने 57% मुकाबले जीते नरेंद्र मोदी स्टेडियम की पिच पर बल्लेबाजों को ज्यादा मदद मिलती है। इस वजह से यहां हाई स्कोरिंग मैच देखने को मिल सकता है। मैदान पर टी-20 क्रिकेट का बेस्ट टीम स्कोर 234 रन है, यह भारत ने 2023 में न्यूजीलैंड के खिलाफ बनाया था। दूसरी पारी में ओस का ध्यान रखते हुए कप्तान टॉस जीतकर पहले गेंदबाजी करने का फैसला कर सकते हैं। इस मैदान पर अब तक 7 टी-20 इंटरनेशनल खेले गए हैं। इनमें 4 मैच पहले बल्लेबाजी करने वाली टीम ने जीते हैं, जबकि 3 मैच चेज करने वाली टीम ने जीते हैं। दोनों टीमों पॉसिबल प्लेइंग-XI भारत: सूर्यकुमार यादव (कप्तान), अभिषेक शर्मा, शुभमन गिल/संजू सैमसन, तिलक वर्मा, हार्दिक पंड्या, शिवम दुबे, जितेश शर्मा (विकेटकीपर), हर्षित राणा, कुलदीप यादव, वरुण चक्रवर्ती और अर्शदीप सिंह। साउथ अफ्रीका: ऐडन मार्करम (कप्तान), रीजा हेंड्रिक्स, क्विंटन डी कॉक (विकेटकीपर), डेवॉल्ड ब्रेविस, ट्रिस्टन स्टब्स, डोनोवन फरेरा, मार्को यानसन, कॉर्बिन बॉश, एनरिक नॉर्त्या, लुंगी एनगिडी और ओर्टनील बार्टमैन।
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