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H-1B और H-4 वीज़ा पर अमेरिका सख्त, अब सोशल मीडिया की होगी जांच

अमेरिका स्थित भारतीय दूतावास ने H-1B और H-4 वीज़ा आवेदकों को लेकर एक अहम “वर्ल्डवाइड अलर्ट” जारी किया है। इसके तहत अब वीज़ा जांच प्रक्रिया पहले से कहीं ज्यादा सख्त कर दी गई है और सोशल मीडिया गतिविधियों की विस्तृत समीक्षा को अनिवार्य कर दिया गया।

बता दें कि अमेरिकी विदेश विभाग ने यह नई व्यवस्था तत्काल प्रभाव से लागू की है। मौजूद जानकारी के अनुसार, अब H-1B और H-4 वीज़ा के लिए आवेदन करने वाले सभी लोगों की ऑनलाइन मौजूदगी की जांच की जाएगी। इसमें सोशल मीडिया प्रोफाइल, सार्वजनिक डिजिटल गतिविधियां और अन्य ऑनलाइन पहचान से जुड़ी जानकारियां शामिल होंगी। यह नियम किसी एक देश तक सीमित नहीं है, बल्कि सभी राष्ट्रीयताओं के आवेदकों पर समान रूप से लागू होंगे।

गौरतलब है कि अमेरिकी दूतावास के मुताबिक, यह कदम H-1B कार्यक्रम के दुरुपयोग को रोकने और उसकी पारदर्शिता बनाए रखने के लिए उठाया गया है। साथ ही, अमेरिका यह भी सुनिश्चित करना चाहता है कि उसकी कंपनियां दुनिया भर से कुशल और योग्य अस्थायी कर्मचारियों को नियुक्त करती रहें। इसी संतुलन को बनाए रखने के लिए स्क्रीनिंग प्रक्रिया को और मजबूत किया गया।

इस अलर्ट के बाद अमेरिका की बड़ी टेक कंपनियों में भी हलचल देखी जा रही है। रिपोर्ट्स के मुताबिक, Apple, Google और Microsoft जैसी दिग्गज कंपनियों ने अपने वीज़ा पर काम कर रहे कर्मचारियों को फिलहाल अंतरराष्ट्रीय यात्रा से बचने की सलाह दी है। Apple की इमिग्रेशन टीम ने अपने कर्मचारियों को भेजे गए ई-मेल में कहा है कि मौजूदा परिस्थितियों में अमेरिका लौटते समय अप्रत्याशित और लंबी देरी हो सकती है, इसलिए बिना वैध H-1B वीज़ा स्टैम्प के यात्रा न करें।

अगर किसी कर्मचारी के लिए यात्रा टालना संभव नहीं है, तो कंपनी ने उन्हें पहले इमिग्रेशन टीम और कानूनी सलाहकारों से संपर्क करने की सिफारिश की। इससे यह संकेत मिलता है कि नई जांच प्रक्रिया के चलते वीज़ा स्टैम्पिंग और एंट्री में अतिरिक्त समय लग सकता हैं।

अमेरिकी दूतावास ने अपने आधिकारिक बयान में यह भी स्पष्ट किया है कि H-1B और H-4 वीज़ा आवेदनों की प्रक्रिया बंद नहीं की गई है। दूतावास और कांसुलेट पहले की तरह आवेदन स्वीकार कर रहे हैं। हालांकि, आवेदकों को सलाह दी गई है कि वे समय रहते आवेदन करें और अतिरिक्त प्रोसेसिंग समय को ध्यान में रखें।

कुल मिलाकर, अमेरिका की यह नई पहल तकनीकी पेशेवरों और उनके परिवारों के लिए महत्वपूर्ण बदलाव लेकर आई है। सोशल मीडिया गतिविधियों को लेकर अब और अधिक सतर्कता बरतने की जरूरत होगी, क्योंकि यह वीज़ा फैसले का एक अहम हिस्सा बन चुका है।

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Epstein case: अमेरिका में नई फाइलें जारी, रेडैक्शन और गायब दस्तावेज़ों पर विवाद

अमेरिका के न्याय विभाग (DOJ) ने दिवंगत यौन अपराधी और फाइनेंसर जेफ्री एप्स्टीन से जुड़े हज़ारों अतिरिक्त दस्तावेज़ सार्वजनिक किए हैं। इन फाइलों में कई प्रभावशाली और चर्चित हस्तियों की तस्वीरें भी शामिल हैं, जिनके साथ एप्स्टीन के संपर्क होने की पुष्टि होती हैं।

बता दें कि यह दस्तावेज़ “एप्स्टीन फाइल्स ट्रांसपेरेंसी एक्ट” के तहत जारी किए गए हैं, जिसे नवंबर में कांग्रेस से पारित होने के बाद तत्कालीन राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कानून का रूप दिया था। इस कानून के अनुसार, सरकार को एप्स्टीन और उसकी सहयोगी घिस्लेन मैक्सवेल से जुड़े सभी गैर-गोपनीय दस्तावेज़ सार्वजनिक करने थे। मैक्सवेल फिलहाल यौन तस्करी मामले में 20 साल की सजा काट रही हैं।

हालांकि, इन फाइलों के सामने आने के बाद पारदर्शिता को लेकर नए सवाल खड़े हो गए हैं। मौजूद जानकारी के अनुसार, बड़ी संख्या में दस्तावेज़ों को भारी तौर पर ब्लैकआउट यानी रेडैक्ट किया गया है, जिससे कई अहम जानकारियां पढ़ी ही नहीं जा सकती हैं। अभियान चला रहे संगठनों का कहना है कि इससे सच्चाई पूरी तरह सामने नहीं आ पा रही हैं।

अमेरिकी मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, जारी की गई फाइलों में से कम से कम 16 दस्तावेज़ बाद में वेबसाइट से हटा दिए गए हैं। इनमें एक तस्वीर ऐसी भी थी, जिसमें डोनाल्ड ट्रंप दिखाई दे रहे थे। इस हटाए जाने को लेकर न्याय विभाग ने अब तक कोई स्पष्ट कारण नहीं बताया है, हालांकि सोशल मीडिया पर विभाग ने कहा है कि सामग्री की कानूनी समीक्षा और आवश्यक रेडैक्शन की प्रक्रिया जारी हैं।

गौरतलब है कि एप्स्टीन ने 2019 में न्यूयॉर्क की जेल में आत्महत्या कर ली थी। उससे पहले भी उससे जुड़े कई दस्तावेज़ और अदालत के रिकॉर्ड सामने आ चुके थे। इस बार जारी हुई फाइलों में एक अहम खुलासा यह है कि एफबीआई को एप्स्टीन के अपराधों की जानकारी उसकी पहली गिरफ्तारी से करीब एक दशक पहले मिल चुकी थी। वर्ष 1996 में पीड़िता मारिया फार्मर ने एफबीआई में शिकायत दर्ज कराई थी, लेकिन उस समय कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई थी।

नई फाइलों में ग्रैंड जूरी की गवाही भी शामिल है, जिसमें नाबालिग लड़कियों से यौन शोषण और पैसों के बदले यौन कृत्यों के विवरण दर्ज हैं। कुछ बयान बताते हैं कि पीड़िताओं की उम्र 14 साल तक थी। एक गवाह ने यह भी कहा कि वह खुद 16 साल की उम्र में एप्स्टीन के संपर्क में आई और बाद में अन्य लड़कियों को लाने के लिए उसे पैसे दिए जाते थे।

इन दस्तावेज़ों के साथ कई तस्वीरें भी सामने आई हैं, जिनमें बिल क्लिंटन, मिक जैगर, माइकल जैक्सन, डायना रॉस, केविन स्पेसी, रिचर्ड ब्रैनसन और ब्रिटेन के प्रिंस एंड्रयू जैसे नाम शामिल हैं। हालांकि, न्याय विभाग ने इन तस्वीरों के संदर्भ या परिस्थितियों को लेकर कोई आधिकारिक विवरण नहीं दिया।

पूर्व राष्ट्रपति बिल क्लिंटन के प्रवक्ता ने इन तस्वीरों को भटकाने वाला बताते हुए कहा है कि क्लिंटन पर कभी कोई आरोप नहीं लगा और वे एप्स्टीन से काफी पहले ही संबंध तोड़ चुके थे। वहीं, ट्रंप से जुड़ी फाइलों को लेकर व्हाइट हाउस का कहना है कि प्रशासन अब तक का सबसे पारदर्शी रहा है और पीड़ितों के हित में काम कर रहा हैं।

डेमोक्रेट सांसदों ने आरोप लगाया है कि फाइलों को अधूरा जारी कर कानून की भावना का उल्लंघन किया गया। सीनेट और हाउस की कई समितियों ने चेतावनी दी है कि अगर पूरी जानकारी सामने नहीं लाई गई, तो अदालत का दरवाज़ा खटखटाया जा सकता हैं।

न्याय विभाग का कहना है कि आने वाले दिनों में और दस्तावेज़ जारी किए जाएंगे, लेकिन तब तक यह सवाल बना हुआ है कि एप्स्टीन नेटवर्क से जुड़ी पूरी सच्चाई कब और कितनी सामने आ पाएगी।

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