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भारतीय सिनेमा की सबसे महान और प्रतिष्ठित फिल्म 'शोले' अपनी ऐतिहासिक रिलीज के 50 साल पूरे होने पर एक बार फिर आज यानी 12 दिसंबर को बड़े पर्दे पर लौट रही है। यह 1500 स्क्रीन पर रिलीज हो रही है। यह सिर्फ एक फिल्मी इवेंट नहीं, बल्कि एक सिनेमाई पर्व है। इस खास मौके पर फिल्म के निर्माता-निर्देशक रमेश सिप्पी ने हमारे साथ एक्सक्लूसिव बातचीत में फिल्म से जुड़े कई अनसुने और सनसनीखेज पहलू साझा किए। उन्होंने बताया कि कैसे ट्रेड ने इसे 'डिजास्टर' कहा, सेंसर बोर्ड ने फिल्म का क्लाइमेक्स क्यों बदलवाया, और कैसे अमिताभ बच्चन ने अपने सबसे कठिन दौर में भी सेट पर असाधारण आत्मविश्वास बनाए रखा। प्रस्तुत है, सिनेमा के इस युगपुरुष के साथ यह विस्तृत बातचीत आप कितने उत्साहित हैं? यह बहुत बड़ी खुशी की बात है कि 50 साल बाद यह फिल्म फिर एक बार रिलीज हो रही है। अब यह देखना है कि दर्शकों में इसे लेकर कितनी चाहत और उत्सुकता है। थोड़े बहुत बदलाव भी हैं। यह जो अब रिलीज होगी, वह असल में वह फिल्म होगी जो मैंने बनाई थी। बाकी कोई बहुत बड़ा फर्क नहीं है, जितना लोग समझ रहे हैं। जो फिल्म लोगों ने पसंद की है, वह तो सही होगी ही। तब एक्चुअली जिस तरह से हमने इसे शुरुआत से अंत तक चाहा था, हमें सेंसर की वजह से थोड़ा-सा समझौता करना पड़ा था। और अब हम यह देखना चाहते हैं कि ओरिजिनल एंडिंग दर्शकों को कैसी लगती है। तब ट्रेड सर्कल ने कहा था कि इसकी ओपनिंग वीक थी? नहीं, नहीं, नहीं! यह भी गलत है। पहले क्या था, मुंबई शहर में 16-17 सिनेमा होते थे, पर हमने इसे 33 सिनेमाघरों में लगाकर रिलीज किया था। चूंकि वीक डेज पर लोग काम भी करते हैं, तो उतना क्राउड नहीं होगा, लेकिन हाउसेज फुल थे। जब फिल्म लगी और ट्रेड पेपर्स ने इसे गलत लिखते हुए पांच हफ्ते तक कहा कि यह डिजास्टर है... ओह गॉड! तो नैचुरली इंडस्ट्री में तो मिक्स्ड ओपिनियन ही निकलेगा ना? लोग कह रहे थे अच्छी है, कुछ कह रहे थे डिजास्टर है, आखिर है क्या? हमें तो समझ में आ गया था जब थर्ड वीक में ऑडियंस आने लगी और वो डायलॉग आने से पहले ही बोलने लगे! हमको तो समझ आ गई कि यह तो ऑडियंस रिपीट करेगी। उस वक्त भी कुछ बदला गया था? डिस्ट्रीब्यूटर्स ने कहा क्योंकि तब इमरजेंसी थी। रात का शो 12 बजे के बाद थिएटर में चल नहीं सकता था, बंद होना था। पहला शो सुबह... चार शो के लिए तो 3.5 घंटे की फिल्म को 3.75 या 4 घंटे चाहिए। इसलिए हमने दो सीन—सूरमा भोपाली और असरानी का जेलर वाला सीन—निकाल दिए थे। वह लाइट सीन्स थे। फिर जब सारे डिस्ट्रीब्यूटर्स ने कहा कि ऑडियंस डिमांड कर रही है, वापस लाइए सीन! फिर हमने वापस जोड़ दिया। ऐसी-ऐसी बातें थीं। उस वक्त का ट्रेड क्यों डर रहा था, जबकि सलीम-जावेद साहब की 'जंजीर' और 'दीवार' भी हिट हो चुकी थी? हां, हमसे पहले 'जंजीर' आ गई थी और हमसे पहले 'दीवार' लग गई थी। दोनों हिट थीं और इतने बड़े डायरेक्टर/प्रोड्यूसर भी जुड़े थे। यह जवाब तो ट्रेड ही दे सकती है, मैं कैसे दूंगा? हमें तो डाउट नहीं था। दरअसल, जब मैंने 'सीता और गीता' बनाई थी, तो वह 50 लाख की थी। फिर हमने शोले के लिए 1 करोड़ का बजट रखा कि 1 करोड़ में बन जाएगी, लेकिन वह 3 करोड़ पर चली गई थी! और जब 3 करोड़ की बन गई, तो उसमें प्रिंट और पब्लिसिटी डाली, तो वह 4 करोड़ हो जाएगा। डिस्ट्रीब्यूटर भी 20% लेता है... आखिर कॉस्टिंग रिकवर कैसे होगी? उनको लगा कि एक टेरिटरी में 1 करोड़ या 1.5 करोड़ का धंधा करेगी। लेकिन किसको पता था कि वह तो एक ही टेरिटरी में उससे ज़्यादा हो जाएगा! 'शोले' ने उस जमाने में टोटल कितना बिजनेस किया था? 5 करोड़ से कम नहीं होगा पर टेरिटरी। तो ऑल इंडिया यह 25 से 30 करोड़ हो गया था। अब क्या चेंजेज कर इसे रिलीज कर रहे? कितने स्क्रीन पर हो रही है, यह आपको डिस्ट्रीब्यूटर से पता चलेगा। हां, हमने कलर ग्रेडिंग नहीं, बल्कि इसे रिस्टोर किया है। इटली की लेबोरेटरी में इसे रिस्टोर किया गया है। अब यह ब्रांड न्यू की तरह लगेंगी। उस समय धर्मेंद्र जी तो बड़े स्टार थे। बच्चन साहब का मुकाबला कैसा था? बच्चन साहब थे। हेमा मालिनी और जया भादुड़ी ने भी नाम कमाया था। संजीव कुमार अच्छे एक्टर थे। हमारे पास तीन स्टार थे। बच्चन जी का चढ़ाव शुरू ही हो रहा था, क्योंकि 'दीवार' इससे पहले लग गई थी। लोग सोचते थे कि इनका कुछ नहीं होगा। हालांकि 'जंजीर' चल गई थी, पर उससे पहले उनकी 10 फिल्में फ्लॉप हो गई थीं, तब भी इंडस्ट्री को कॉन्फिडेंस नहीं आया था। तो 'शोले' के सेट पर उनका कॉन्फिडेंस कैसा था? सेट पर, ही इज वेरी गुड। मैंने उन्हें 'आनंद' और खासकर 'बॉम्बे टू गोवा' में देखा था। मुझे लगा था कि 6 फुट 2 इंच का आदमी नाच भी सकता है और सीरियस रोल भी कर सकता है। अब हमें क्या पता था कि फिल्म रिलीज़ होते-होते वो स्टार बन जाएंगे। उस वक्त सारा ऑल इंडिया साथ में ही रिलीज होता था? दिल्ली छह हफ्ते बाद क्यों रिलीज हुई? हां, बॉम्बे, बंगाल साथ थे। दिल्ली छह हफ्ते बाद रिलीज हुई। पंजाब हो गई थी, लेकिन दिल्ली नहीं हुई। अगर पंजाब में रिलीज हुई, तो दिल्ली से लोग बस पकड़कर वहां जाते थे। अमिताभ बच्चन ने कभी सवाल किया कि मेरे कैरेक्टर को मत मारो? बिल्कुल नहीं! वह 'दीवार' में ऑलरेडी मरकर शहीद हो गए थे। वह कन्विंस्ड थे। इंडस्ट्री में बहुत से ऑडियंस का सवाल है कि क्यों मारा उसको? अरे भाई, ये तो कहानी है। उनकी दोस्ती इतनी गहरी थी, इसीलिए जब उस दोस्त के लिए उसने बोला कि अब मैं खत्म करूँगा, तो वह निकल पड़े। वह मरने वाला सीन सिंगल टेक में पूरा शूट हो गया था। और एक्शन डायरेक्टर कौन थे इस फिल्म पर? जिन एललेन थे। 'शोले' पहली इंडियन फिल्म थी, जिसमें हॉलीवुड के टेक्नीशियंस ने काम किया। उस टाइम पर विदेशों में कहां-कहां रिलीज किया गया था? हर जगह रिलीज हुई थी। सबसे ज्यादा कलेक्शन यूके (UK) से आया। उस वक्त अमेरिका इतना ग्रो नहीं हुआ था, इसलिए न्यूयॉर्क, कनाडा की जगहों पर रिलीज हुई थी।
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