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स्टारलिंक वाइस प्रेसिडेंट लॉरेन ड्रेयर ने ज्योतिरादित्य सिंधिया से की मुलाकात, सैटेलाइट-आधारित लास्ट-माइल कनेक्टिविटी को बढ़ाने पर हुई चर्चा

नई दिल्ली | केंद्रीय संचार एवं पूर्वोत्तर क्षेत्र विकास मंत्री ज्योतिरादित्य एम. सिंधिया ने आज स्पेसएक्स की स्टारलिंक बिज़नेस ऑपरेशंस की उपाध्यक्ष लॉरेन ड्रेयर तथा स्टारलिंक की टीम के साथ बैठक की। चर्चा का मुख्य उद्देश्य भारत में सैटेलाइट-समर्थित डिजिटल कनेक्टिविटी को सुदृढ़ बनाना और इसे देशव्यापी विस्तार देना रहा, ताकि डिजिटल सेवाओं का लाभ अंतिम छोर तक पहुँच सके। 
 

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बैठक के दौरान सिंधिया ने रेखांकित किया कि सैटेलाइट कम्युनिकेशन तकनीकें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ‘डिजिटल एम्पावर्ड इंडिया’ के विज़न को साकार करने में एक महत्वपूर्ण स्तंभ हैं। उन्होंने कहा कि सैटकॉम आधारित समाधान देश के उन भौगोलिक व सामाजिक क्षेत्रों तक विश्वसनीय कनेक्टिविटी पहुँचाने में अनिवार्य हैं, जहाँ पहुंच मुश्किल है। ये तकनीक विशेषकर ग्रामीण, पर्वतीय, सीमावर्ती और द्वीपीय क्षेत्रों में निर्बाध कनेक्टिविटी उपलब्ध कराने के लिए आवश्यक हैं। यह तकनीक सुनिश्चित करती है कि इन दूरस्थ क्षेत्रों के नागरिक भी सहजता से डिजिटल सेवाओं, शासन से जुड़े प्लेटफ़ॉर्मों और ऑनलाइन सुविधाओं का लाभ उठा सकें। 
 

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दोनों पक्षों के बीच सैटेलाइट आधारित अंतिम-मील कनेक्टिविटी के माध्यम से भारत में डिजिटल समावेशन की गति को उल्लेखनीय रूप से बढ़ाने पर विस्तृत चर्चा हुई। यह न केवल कनेक्टिविटी अंतर को कम करने में सहायता करेगी बल्कि शिक्षा, स्वास्थ्य, उद्यम, प्रशासन और स्थानीय अर्थव्यवस्था जैसे क्षेत्रों में व्यापक सामाजिक-आर्थिक विकास को भी गति देगी। केन्द्रीय मंत्री ने यह भी कहा कि जैसे-जैसे भारत तीव्र गति से अपने डिजिटल ट्रांसफ़ॉर्मेशन की ओर अग्रसर है, वैसे-वैसे स्टारलिंक जैसी विश्व-स्तरीय सैटकॉम कंपनियों के साथ रणनीतिक साझेदारियाँ राष्ट्रीय प्रयासों को नई ऊर्जा प्रदान करती हैं। उन्होंने इस बात पर बल दिया कि ऐसे सहयोग देश के प्रत्येक नागरिक तक सुरक्षित और विश्वसनीय कनेक्टिविटी पहुँचाने, तथा भारत को एक समग्र डिजिटल राष्ट्र बनाने की दिशा में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाएँगे।

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Shaurya Path: Suryakiran और Garuda Shakti Exercise देख कांप उठे भारत के दुश्मन, Indian Army बनी महाशक्ति

भारत की सैन्य शक्ति आज केवल सीमा की रक्षा का नाम नहीं, बल्कि दक्षिण एशिया से लेकर इंडो-पैसिफिक तक स्थिरता, संतुलन और शांति की गारंटी है। यह शक्ति सिर्फ हथियारों से नहीं, बल्कि अनुशासन, रणनीति, तकनीक और उससे भी बढ़कर, भारतीय सैनिक के अटूट साहस से जन्म लेती है। हाल की तीन महत्वपूर्ण घटनाओं पर नजर डालें तो इंडो-नेपाल संयुक्त सैन्य अभ्यास सूर्य किरण, भारत-इंडोनेशिया स्पेशल फोर्सेज अभ्यास गरुड़ शक्ति और भारतीय सेना द्वारा अग्रिम मोर्चों पर थ्री-डी कंक्रीट प्रिंटिंग प्रौद्योगिकी का तेज़ी से अपनाना, दुनिया को यह संकेत देते हैं कि भारत की सेना 21वीं सदी की सबसे सक्षम, चुस्त, आधुनिक और निर्णायक सेनाओं में से एक है।

हम आपको बता दें कि पिथौरागढ़ में संपन्न सूर्य किरण 2025 केवल एक संयुक्त अभ्यास नहीं था, यह हिमालयी सुरक्षा ढाँचे की मजबूती, भारत-नेपाल की ऐतिहासिक मित्रता और भविष्य की सामरिक साझेदारी का सजीव प्रतीक था। दोनों देशों के डीजीएमओ द्वारा संयुक्त रूप से वैलिडेशन एक्सरसाइज़ का निरीक्षण यह दर्शाता है कि दो सेनाएँ केवल सीमाएँ साझा नहीं करतीं, बल्कि रणनीतिक दृष्टिकोण और परिचालन क्षमता भी साझा करती हैं। ड्रोन, AI-सक्षम निगरानी, सुरक्षित संचार और पहाड़ी इलाकों में एयर-इंसर्शन जैसी क्षमताएँ दिखाकर दोनों सेनाओं ने एक स्पष्ट संदेश दिया कि अगर आतंक का कोई साया हिमालय की ढलानों में पाँव रखने की भूल करेगा, तो हमारा जवाब तेज़, संगठित और निर्णायक होगा।

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इसी तरह गरुड़ शक्ति 2025 में भारतीय और इंडोनेशियाई विशेष बलों का तालमेल भारत की बढ़ती इंडो-पैसिफिक भूमिका का प्रमाण है। हेलिबॉर्न मिशन, सेमी-माउंटेन ऑपरेशंस, ड्रोन-विरोधी तकनीक और एक–एक गोली की सटीकता ने दिखाया कि भारत केवल अपने लिए नहीं, बल्कि पूरे क्षेत्र की सुरक्षा-चेतना का केंद्र बन चुका है। भारत के विशेष बल शैडोज़ ऐंड स्टील आज आतंकवादियों और शत्रुओं दोनों के लिए यह समझना आवश्यक बना चुके हैं कि आधुनिक युद्धक्षेत्र में भारतीय कमांडो का सामना करना केवल कठिन नहीं, लगभग विनाशकारी साबित होगा।

देखा जाये तो इन अभ्यासों से उत्पन्न शक्ति केवल ट्रेनिंग-ग्राउंड तक सीमित नहीं रहती। इसके साथ-साथ भारतीय सेना की इंजीनियरिंग क्षमता भी एक नए युग में प्रवेश कर चुकी है। सिक्किम के अग्रिम क्षेत्रों में ऑन-साइट 3D कंक्रीट प्रिंटिंग का इस्तेमाल यह दिखाता है कि भारत अब सीमा निर्माण को पुराने ढंग से नहीं देखता। यह तकनीक कुछ ही घंटों में बंकर, चौकियाँ और रक्षा संरचनाएँ खड़ी कर सकती है, वह भी ऊँचाई, बर्फ़ और कठिन भू-भाग के बीच। विस्फोट-रोधी, बैलिस्टिक-प्रतिरोधी, स्थानीय सामग्री से निर्मित और पूरी तरह स्वदेशी संरचनाएँ दुश्मन को यह बताने के लिए काफी हैं कि भारत की सीमाओं को कमज़ोर करना अब संभव नहीं है।

वहीं, सैन्य ढाँचे की मजबूती को आगे बढ़ाते हुए रूस और भारत के बीच रक्षा उपकरणों और स्पेयर पार्ट्स को भारत में ही बनाने की सहमति एक निर्णायक बदलाव है। वर्षों से भारतीय बलों की यह समस्या रही कि विदेशी पुर्ज़ों की विलंबित सप्लाई ऑपरेशनल तैयारी पर असर डालती थी। लेकिन अब मेक इन इंडिया के तहत रूसी प्रणालियों के पुर्ज़े भारत में ही बनेंगे वह भी तेज़ी से, भरोसे के साथ और निर्यात क्षमता के साथ। इससे भारतीय सेना की तत्परता नई ऊँचाइयों पर पहुँचेगी।

इन तमाम घटनाक्रमों का सार यही है कि भारतीय सेना एक ऐसे निर्णायक युग में प्रवेश कर चुकी है जहाँ तकनीक, प्रशिक्षण, सामरिक साझेदारी और स्वदेशीकरण मिलकर भारत की सुरक्षा नीति को अभेद्य बनाते हैं। दुश्मनों के लिए यह समय मनन का है क्योंकि आज भारत न केवल अपने क्षेत्रीय वातावरण को पढ़ना जानता है, बल्कि उसे आकार देने की क्षमता भी रखता है। जो राष्ट्र AI, ड्रोन स्वार्म, C-UAS, 3D प्रिंटेड डिफेंस स्ट्रक्चर और संयुक्त स्पेशल फोर्स ऑपरेशंस में दक्ष हो, उसकी सेना को चुनौती देना वैसा ही है जैसे पर्वत से टकराकर हवा अपने दिशा-ज्ञान पर प्रश्न खड़ा करे।

भारतीय सैनिकों की यही विशिष्टता है कि वह तकनीक से लैस हैं, पर तकनीक पर निर्भर नहीं; वह परंपरा से प्रेरित हैं, पर अतीत में अटके नहीं हैं; वह मित्रता का हाथ भी बढ़ाते हैं और शांति का मार्ग भी दिखाते हैं, पर राष्ट्र की संप्रभुता से समझौता करने का विकल्प कभी नहीं चुनते। पिथौरागढ़ में लगाया गया “मित्रता का वृक्ष” इस बात का प्रतीक है कि भारत साझेदारी चाहता है, प्रभुत्व नहीं; पर भारत की मित्रता को उसकी कमजोरी समझना, इतिहास की वही गलती होगी जिसका परिणाम शत्रुओं को हमेशा भारी पड़ा है।

बहरहाल, जहाँ भारतीय तिरंगा लहराता है, वहाँ साहस सीमा नहीं देखता और जहाँ भारतीय सैनिक खड़ा होता है, वहाँ शत्रु केवल दूरी ही नहीं, दिशा भी बदल लेता है। यह नया भारत है, शांत, सक्षम और निर्णायक। और यह भारतीय सेना है अडिग, अजेय और अटल।

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